रश्मि अग्रवाल
आज स्वच्छता की बेहद आवश्यकता है। आज हम अपनी वैज्ञानिक एवं औद्योगिक प्रगति पर गौरवान्वित हैं क्योंकि इसी के कारण हम अनेक सुख-सुविधाओं का उपयोग/उपभोग करते हुए जीवन यापन कर रहे हैं परंतु इनके कारण जहाँ जीवन में गुणवत्ता आई है वहीं पर्यावरण अपकर्षण यानि कचरा निपटान या उससे जुड़ी समस्याएँ भी उजागर हुई हैं। इस समस्या का विश्लेषण करें तो इसकी प्रकृति, दुष्प्रभाव व तरीकों सभी को गंभीरता से समझना होगा। 2 अक्टूबर 2019 तक स्वच्छ भारत के मिशन और दृष्टि को पूरा करने के लिए भारतीय सरकार द्वारा कई सारे लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की गई जो कि महान महात्मा गाँधी का 150वाँ जन्म दिवस होगा। ऐसा अपेक्षित है कि भारतीय रुपए में 62000 करोड़ अनुमानित खर्च है। सरकार द्वारा घोषणा की गई है कि ये अभियान राजनीति के ऊपर है और देशभक्ति से प्रेरित है। स्वच्छ भारत अभियान के निम्न कुछ महत्वपूर्ण उद्देश्य।
- भारत में खुले में मलत्याग की व्यवस्था का जड़ से उन्मूलन।
- अस्वास्थ्यकर शौचालयों को बहाने वाले शौचालयों में बदलना।
- हाथों से मन की सफाई करने की व्यवस्था को हटाना।
- लोगों के व्यवहार में बदलाव कर अच्छे स्वास्थ्य के लिए जागरुक करना।
- जन-जागरुकता पैदा करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य और साफ-सफाई के कार्यक्रम से लोगों को जोड़ना।
- साफ-सफाई से संबंधित सभी व्यवस्था को नियंत्रित, डिजाइन और संचालन करने के लिए शहरी स्थानीय निकाय को मजबूत बनाना।
- पूरी तरह से वैज्ञानिक प्रक्रियाओं से निपटानों का दुबारा प्रयोग और म्यूनिसिपल ठोस अपशिष्ट का पुनर्चक्रण।
- सभी संचालनों के लिए पूँजीगत व्यय में निजी क्षेत्र को भाग लेने के लिए जरूरी वातावरण और स्वच्छता अभियान से संबंधित खर्च उपलब्ध कराना।
भारत में स्वच्छता के दूसरे कार्यक्रम जैसे केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम का प्रारंभ 1986 में पूरे देश में हुआ जो कि गरीबी रेखा से नीचे के लोगों के व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए स्वास्थ्यप्रद शौचालय बनाने पर केंद्रित था। इसका उद्देश्य सूखे शौचालयों को अल्प लागत से तैयार स्वास्थ्यप्रद शौचालयों में बदलना, खासतौर से ग्रामीण महिलाआंे के लिए शौचालयों का निर्माण करना तथा दूसरी सुविधाएँ जैसे हैंड पम्प, नहान-गृह, स्वास्थ्यप्रद, हाथों की सफाई आदि था। यह लक्ष्य था कि सभी उपलब्ध सुविधाएँ ठीक ढंग से ग्राम पंचायत द्वारा पोषित की जाएगी। गाँव की उचित सफाई व्यवस्था जैस जल निकासी व्यवस्था, सोखने वाला गड्ढा, ठोस और द्रव अपशिष्ट का निपटान, स्वास्थ्य शिक्षा के प्रति जागरुकता, सामाजिक, व्यक्तिगत, घरेलू साफ-सफाई व्यवस्था आदि की जागरुकता हो।
ग्रामीण साफ-सफाई कार्यक्रम का पुनर्निमाण करने के लिए भारतीय सरकार द्वारा 1999 में भारत में सफाई के पूर्ण स्वच्छता अभियान की शुरुआत हुई। पूर्ण स्वच्छता अभियान को बढ़ावा देने के लिए साफ-सफाई कार्यक्रम के तहत जून 2003 के महीने में निर्मल ग्राम पुरस्कार की शुरुआत हुई। ये एक प्रोत्साहन योजना थी जिसे भारत सरकार द्वारा 2003 में लोगों को पूर्ण स्वच्छता की विस्तृत सूचना देने पर, पर्यावरण को साफ रखने के लिए साथ ही पंचायत, ब्लाॅक, और जिलों द्वारा गाँव को खुले में शौच करने से मुक्त करने के लिए प्रारंभ की गई थी।
इस वर्ष यानि 2018 के सर्वेक्षण में 4302 शहरों और नगरपालिकाओं के क्षेत्रों ने इसमें भाग लिया जबकि पिछले वर्ष मात्र 432 शहरों ने और 2016 में मात्र 73 शहरों ने भाग लिया था। पश्चिम बंगाल के शहरों ने इस वर्ष पहली बार स्वच्छता सर्वेक्षण में भाग लिया तो देश भर के कैंटोनमेंट बोर्डाें को भी इसी वर्ष सर्वेक्षण से जोड़ा गया। मध्य प्रदेश का इंदौर निरंतर दूसरे वर्ष भी देश का स्वच्छ नगर पालिका परिषद हैं, जिसे 'स्वच्छ छोटी सिटी' का तमगा मिला है। ऐसे ही झारखंड को देश का सबसे स्वच्छ राज्य आंका गया है, इस सूची में उत्तर प्रदेश की रैंकिग 18वी है, तो झारखंड के नौ शहर शीर्ष सौ स्वच्छ शहरों में भी शामिल हैं। इस वर्ष के सर्वेक्षण ने दिल्ली और उत्तर प्रदेश केा थोड़ा गौरवान्वित होने का अवसर दिया है। नई दिल्ली नगरपालिका परिषद् के अतिरिक्त दक्षिण दिल्ली नगर निगम पिछले साल की 202वीं रैंकिग से सुधकर 32वें स्थान पर पहुँच गया है, हालांकि पूर्व और उत्तर दिल्ली नगर-निगम की दशा बदतर है। उत्तर प्रदेश मंें वाराणसी सूबे का सबसे अच्छा शहर है, जिसकी गिनती 32 से सुधरकर 29 हो गई है, पर सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि गाजियाबाद, अलीगढ़ की है, जो पिछले वर्ष 351वीं पायदान से उछलकर 36वें स्थान पर आ गया है। गाजियाबाद, अलीगढ़ और समधर ;झांसीद्ध को कचरा निस्तारण में सर्वोत्तम निस्तारण में सर्वोत्तम बंधन हेतु पुरस्कृत भी किया गया है। जबकि उत्तर प्रदेश के तीन शहर सबसे गंदे शहरों में भी हैं, जिनमें गौंडा के अतिरिक्त गाजियाबाद की खोड़ा-मकनपुर नगरपालिका परिषद् भी है। देश के 25 सबसे गंदे शहरों में से 19 शहर पश्चिम बंगाल के हैं, पर आशा की किरण दिखाई देती है कि साफ-सफाई का वातावरण बनने से इस राज्य मंे भी स्थिति सुधरेगी, जो अभी नागालैंड, पुडुचेरी और त्रिपुरा के साथ देश के सबसे गंदे राज्यों में से हैं। इस प्रकार के सर्वेक्षण तो होते रहने चाहिए ताकि देश के प्रत्येक हिस्से की स्वच्छता का ज्ञान होता रहे पर सिर्फ सर्वेक्षणों से तो बात नहीं बनती, स्वच्छता को स्थायी रूप से हमारी संस्कृति का हिस्सा बनना चाहिए क्योंकि देखा गया है कि सर्वेक्षण के समय शासन-प्रशासन इस मोर्चे पर अत्यधिक सक्रिय हो जाते हैं।
1975 में शिव रामन समिति को सुझाव कुछ इस प्रकार थे कि बड़े-बड़े कूड़ेदानों की स्थापना, मानव द्वारा अपशिष्टों को भूमि में दबाना (जिसमें प्लास्टिक न हो) रेनडरिंग के अंतर्गत वसा, पंख, रक्त आदि पशु-अवशेषों को पकाकर चर्बी, जिसमें साबुन बनाना, कचरे से ऊर्जा प्राप्ती इसमें मिश्रित कार्बनिक पदार्थों का विशेष प्रक्रिया से गर्म कर 'मिथेन गैस' ईंधन के रूप में तैयार करना, नगरीय जल-मल को नगर से दूर गर्त में डालना ताकि वहीं से शुद्धिकरण के पश्चात् सिंचाई आदि में प्रयोग किया जाए। उद्योगों में कचरा निस्तारण हेतु कानूनी रूप से बाध्य किया जाना, अपशिष्ट पदार्थों का पुनर्चक्रण कर रद्दी कागज, लोहे की कतरनों से स्टील, एल्युमीनियम के टुकड़ों से पुनः एल्युमीनियम, व्यर्थ प्लास्टिक की समुचित व्यवस्था, सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर अपशिष्ट पदार्थों का प्रबंधन एवं उनके उपयोगों के संबंध में निरंतर शोध एवं विकसित देशों को विकासशील देशों की वे सभी तकनीकें प्रदान करनी चाहिए जो अपशिष्ट निस्तारण एवं पर्यावरण संतुलन में सहायक हों।
संदर्भ- 1. अमर उजाला 2. दैनिक जागरण 3. दैनिक हिंदुस्तान 4. जनवाणी
राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत (लेखिका)
वाणी अखिल भारतीय हिंदी संस्थान, बालक राम स्ट्रीट, नजीबाबाद-246763 (बिजनौर)
E.mail- rashmivirender5@gmail.com
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