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Showing posts from June, 2020

उच्च शिक्षा और भारतीय भाषाएँ' पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार संपन्न

  हैदराबाद (प्रेस विज्ञप्ति)।    भारत सरकार ने उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय के स्तर की पाठ्य सामग्री को आठवीं अनुसूची में उल्लिखित 22 भाषाओं में अनुवाद करने तथा प्रकाशित करने की योजना बनाई है। प्रकाशन के लिए अनुदान भी प्रदान किया जा रहा है। भारत के पास सुनिश्चित भाषा नीति नहीं है। इसीलिए भाषा नीति तैयार करने और उसे क्रियान्वित करने के लिए मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान की स्थापना की गई थी। अब अनेक विश्वविद्यालयों में लुप्तप्राय भाषाओं के लिए अलग केंद्र भी खोले जा रहे हैं। साथ ही संस्कृत भाषा के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। आज हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में बुनियादी और उच्च शिक्षा से संबंधित मौलिक  सामग्री उपलब्ध कराने के लिए अनेक कदम उठाए जा रहे हैं।    इन सब विषयों पर विमर्श हेतु गठित "वैश्विक हिंदी परिवार" के तत्वावधान में 'उच्च शिक्षा और भारतीय भाषाएँ' विषय पर 21 जून, 2020 को ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी/ वेबिनार संपन्न हुई। बतौर मुख्य वक्ता रबींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे ने अपने

लौकी की बेल

इन्द्रदेव भारती रामा !  बेल  चढ़ी  लौकी की, लो  अपने  भी  द्वार  चढ़ी ।। भोर  भये   में   कलियां   फूटैं, सूरज    चढ़ते    चटकै     हैं । भरी   दुपहरी   फूलन    फूलैं, देख  सभी   जन   मटकै   हैं । चोबाइन    के    चौबारे   पै, त्यागन   की   दीवार  चढ़ी ।। छुटकी-छुटकी कोमल जइयाँ, बड़की - बड़की जब  होंगी । जब होंगी जी,  तब  होंगी वो, और  ग़ज़ब  की   सब  होंगी । धोबनिया  के  घाट  पै  फैली, नाइन    के   ओसार   चढ़ी ।। घोसनिया   के   घेर  चढ़ी जी, बामनिया    के     बंगले   पै । चौहनिया  के  चौक  चढ़ी  तो, जाटनिया    के    जंगले   पै । गुरुद्वारे   के   गुम्बद  ऊपर, मंदिर  जी   के   द्वार  चढ़ी ।। मनिहारन  की   चढ़ी  मुंडेरी, चढ़ी  जुलाहन   के   घर  पै । चढ़ी   लुहारन  के   हाते   में, छिप्पीयन   के    छप्पर   पै । गिरजाघर  के  गेट  चढ़ी  तो, मस्ज़िद  की   मीनार  चढ़ी ।। चढ़ी  अमीरन  के  आंगन  में, नीम   चढ़ी    निर्धनिया  के । चढ़ी  खटीकन की   खोली पै, बिना   भेद    तेलनिया   कै । हिंदू, मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई वार के  सब पे  प्यार चढ़ी ।

ग़ज़लिया

इन्द्रदेव भारती आधी रख,या सारी रख । लेकिन  रिश्तेदारी  रख ।। छोड़ के  तोड़  नहीं प्यारे, मोड़ के अपनी यारी रख । शब्दों  में  हो  शहद  घुला, नहीं  ज़बाँ पर आरी रख । भले  तेरी   दस्तार   गयी, तू  सबकी  सरदारी  रख । "देव''  नहीं   दुनिया  तेरी,   पर  तू   दुनियादारी  रख ।  

एक ग़ज़लिया

इन्द्रदेव भारती खुशियाँ  दे  तो   पूरी दे । बिल्कुल  नहीं अधूरी दे । कुनबा  पाल सकूँ  दाता, बस  इतनी  मजदूरी  दे । बेशक आधी  प्यास बुझे, लेकिन   रोटी   पूरी   दे । बिटिया  बढ़ती  जावे  है, इसको  मांग  सिंदूरी  दे । पैर  दिये   हैं  जब   लंबे, तो  चादर  भी   पूरी  दे । आँगन   में   दीवार  उठे, ऐसी   मत  मजबूरी  दे । 'देव'  कपूतों  से  अच्छा, हमको  पेड़  खजूरी  दे । 

पर्यावरण अपना

ज्योत्सना भारती यह.... धरती ! रहे....सजती ! सजे पर्यावरण अपना । यही   विनती ! कलम करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।।             ( 1 ) ये  जीवनदायनी  वायु, ये जीवनदायी पानी है । ये माटी  उर्वरा  माँ  है, ये ऊर्जा भी बचानी है । वो वापिस लो ! गया   है   जो ! हरा पर्यावरण अपना ।। यही   विनती ! कलम करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।।              ( 2 ) कहीं पे  रात हैं  दहकी, कहीं पे दिन हैं बर्फानी । कहीं भूकंप,कहीं सूखे, कहीं वर्षा की मनमानी । न कर दूषित ! करो  पोषित ! बचा पर्यावरण अपना ।। यही   विनती ! कलम करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।।               ( 3 ) है कटना वृक्ष जरूर एक, तो पौधें दस वहाँ  लगनी । नहीं कंक्रीट  की  फसलें, किसी भी खेतअब उगनी । न  शोषित   हो ! औ शोभित हो ! सदा  पर्यावरण अपना ।। यही    विनती ! कलम  करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।।               ( 4 ) न भाषण हों,न वादे हों, न  बातें हों,  कहानी हों । यही शुभ कर्म,मानें धर्म, यदि  स्वांसें  बचानी  हों । ये  घोषित हो ! प्रदूषित    हो ! नहीं  पर्यावरण अपना ।। यही   विनती ! कलम करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।।  

 श्याम रंग वाला कागा

इन्द्रदेव भारती (1) भोर   भये    वो, आता   है    जो, काँव-काँव  करता कागा । नंद   के    नंदन, के   शुभ  दर्शन, करता है  वो  बिन नागा । (2) हाथ में....पौंची, गल.....वैजन्ती, कान में कुंडल मधुर बजे । कटि करधनिया, पग....पैंजनिया, पंख  मोर का शीश सजे । (3) जसुमति  मैया, कृष्ण  कन्हैया, को माखन - रोटी देके । चुपके -चुपके, ओट में छुपके, रूप  देखती  कान्हा के । (4) ठुमक-ठुमक के, आये जो चलके, आँगन बीच कन्हाई ज्यों । ताक   में   बैठे, काग   ने   देखे, दृष्टि  उधर   गड़ाई   त्यों । (5) माखन    रोटी, हरि  हाथ  की, चोंच दबा कर के भागा । जगत अभागा, मगर   सुभगा, श्याम रंग  वाला  कागा । गीतकार - इन्द्रदेव भारती

मन समर्पित, तन समर्पित

रामावतार त्यागी   मन समर्पित, तन समर्पित, और यह जीवन समर्पित। चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ। माँ तुम्‍हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन, किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन- थाल में लाऊँ सजाकर भाल मैं जब भी, कर दया स्‍वीकार लेना यह समर्पण। गान अर्पित, प्राण अर्पित, रक्‍त का कण-कण समर्पित। चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ। माँज दो तलवार को, लाओ न देरी, बाँध दो कसकर, कमर पर ढाल मेरी, भाल पर मल दो, चरण की धूल थोड़ी, शीश पर आशीष की छाया धनेरी। स्‍वप्‍न अर्पित, प्रश्‍न अर्पित, आयु का क्षण-क्षण समर्पित। चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ। तोड़ता हूँ मोह का बंधन, क्षमा दो, गाँव मेरी, द्वार-घर मेरी, ऑंगन, क्षमा दो, आज सीधे हाथ में तलवार दे-दो, और बाऍं हाथ में ध्‍वज को थमा दो। सुमन अर्पित, चमन अर्पित, नीड़ का तृण-तृण समर्पित। चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।

पर्यावरण अपना

 ज्योत्सना भारती   यह.... धरती ! रहे....सजती ! सजे पर्यावरण अपना । यही   विनती ! कलम करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।।             ( 1 ) ये  जीवनदायनी  वायु, ये जीवनदायी पानी है । ये माटी  उर्वरा  माँ  है, ये ऊर्जा भी बचानी है । वो वापिस लो ! गया   है   जो ! हरा पर्यावरण अपना ।। यही   विनती ! कलम करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।।              ( 2 ) कहीं पे  रात हैं  दहकी, कहीं पे दिन हैं बर्फानी । कहीं भूकंप,कहीं सूखे, कहीं वर्षा की मनमानी । न कर दूषित ! करो  पोषित ! बचा पर्यावरण अपना ।। यही   विनती ! कलम करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।।               ( 3 ) है कटना वृक्ष जरूर एक, तो पौधें दस वहाँ  लगनी । नहीं कंक्रीट  की  फसलें, किसी भी खेतअब उगनी । न  शोषित   हो ! औ शोभित हो ! सदा  पर्यावरण अपना ।। यही    विनती ! कलम  करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।।               ( 4 ) न भाषण हों,न वादे हों, न  बातें हों,  कहानी हों । यही शुभ कर्म,मानें धर्म, यदि  स्वांसें  बचानी  हों । ये  घोषित हो ! प्रदूषित    हो ! नहीं  पर्यावरण अपना ।। यही   विनती ! कलम करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।। ए/3-आदर्शनगर नजीबाबाद-246763 (ब

ऐ ज़िंदगी!

निधी   ऐ ज़िंदगी! ज़रा ठहर वक्त लिख रहा है सदियों की दास्तां। बन न जाए ये हकीक़त  कहीं किस्से कहानी दुनिया के लिए तूने तो दिखाया आईना  हम ही नादान बने गर तो तेरी क्या खता ए ज़िन्दगी  क्या अहम, क्या घमण्ड क्या मैं, क्या तू सब हैं एक दायरे में अब समझ जाएं तो बात बने।।।

खुशियाँ  दे  तो   पूरी दे

इन्द्रदेव भारती खुशियाँ  दे  तो   पूरी दे । बिल्कुल  नहीं अधूरी दे । कुनबा  पाल सकूँ  दाता, बस  इतनी  मजदूरी  दे । बेशक आधी  प्यास बुझे, लेकिन   रोटी   पूरी   दे । बिटिया  बढ़ती  जावे  है, इसको  मांग  सिंदूरी  दे । पैर  दिये   हैं  जब   लंबे, तो  चादर  भी   पूरी  दे । आँगन   में   दीवार  उठे, ऐसी   मत  मजबूरी  दे । 'देव'  कपूतों  से  अच्छा, हमको  पेड़  खजूरी  दे ।  नजीबाबाद(बिजनौर)उ.प्र

हारे थके मुसाफिर

रामावतार त्यागी   हारे थके मुसाफिर के चरणों को धोकर पी लेने से मैंने अक्सर यह देखा है मेरी थकन उतर जाती है । कोई ठोकर लगी अचानक जब-जब चला सावधानी से पर बेहोशी में मंजिल तक जा पहुँचा हूँ आसानी से रोने वाले के अधरों पर अपनी मुरली धर देने से मैंने अक्सर यह देखा है, मेरी तृष्णा मर जाती है ॥ प्यासे अधरों के बिन परसे, पुण्य नहीं मिलता पानी को याचक का आशीष लिये बिन स्वर्ग नहीं मिलता दानी को खाली पात्र किसी का अपनी प्यास बुझा कर भर देने से मैंने अक्सर यह देखा है मेरी गागर भर जाती है ॥ लालच दिया मुक्ति का जिसने वह ईश्वर पूजना नहीं है बन कर वेदमंत्र-सा मुझको मंदिर में गूँजना नहीं है संकटग्रस्त किसी नाविक को निज पतवार थमा देने से मैंने अक्सर यह देखा है मेरी नौका तर जाती है ॥

ज़िंदगी एक रस किस क़दर हो गई

रामावतार त्यागी ज़िंदगी एक रस किस क़दर हो गई एक बस्ती थी वो भी शहर हो गई घर की दीवार पोती गई इस तरह लोग समझें कि लो अब सहर हो गई हाय इतने अभी बच गए आदमी गिनते-गिनते जिन्हें दोपहर हो गई कोई खुद्दार दीपक जले किसलिए जब सियासत अंधेरों का घर हो गई कल के आज के मुझ में यह फ़र्क है जो नदी थी कभी वो लहर हो गई एक ग़म था जो अब देवता बन गया एक ख़ुशी है कि वह जानवर हो गई जब मशालें लगातार बढ़ती गईं रौशनी हारकर मुख्तसर हो गई

आधी रख,या सारी रख

इन्द्रदेव भारती   आधी रख,या सारी रख । लेकिन  रिश्तेदारी  रख ।। छोड़ के  तोड़  नहीं प्यारे, मोड़ के अपनी यारी रख । शब्दों  में  हो  शहद  घुला, नहीं  ज़बाँ पर आरी रख । भले  तेरी   दस्तार   गयी, तू  सबकी  सरदारी  रख । "देव''  नहीं   दुनिया  तेरी,   पर  तू   दुनियादारी  रख । नजीबाबाद(बिजनौर)उ.प्र

डिजिटल संप्रेषण और साहित्य पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार संपन्न

हैदराबाद, 1 जून 2020  हिंदी हैं हम विश्व मैत्री मंच, हैदराबाद के तत्वावधान में 1 जून, 2020 को मध्याह्न 3 बजे से 5 बजे तक "तकनीकी व डिजिटल संप्रेषण की दुनिया में हिंदी साहित्य के बढ़ते क़दम" विषय पर एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेबिनार सफलतापूर्वक आयोजित किया गया। मुख्य वक्ता के रूप में प्रसिद्ध कवि-समीक्षक प्रो. ऋषभदेव शर्मा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार तेजेंद्र शर्मा उपस्थित थे।  हैदराबाद केंद्र से संचालित अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में दोनों विद्वानों ने महत्वपूर्ण विचार रखे। प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने अंतरराष्ट्रीय  स्तर पर हिंदी साहित्य के क्षेत्र में हैदराबाद नगर को एक विशेष स्थान दिलाया है। उन्होंने तकनीकी संप्रेषण के माध्यम से हिंदी साहित्य की बढ़ोतरी के बारे में अपने विचर अभिव्यक्त किए। प्रो. ऋषभ ने कहा कि वर्तमान समाज सही अर्थ में 'सूचना समाज' है। अब साहित्य पुस्तकों की दहलीज लाँघ कर डिजिटल मल्टीमीडिया के सहारे अधिक लोकतांत्रिक बनने की ओर अग्रसर है। उन्होंने मुक्त वितरण के लिए तकनीकी के उपयोग की जानकारी देने के साथ ही विभिन्न आधुनिक संचार