अमृता प्रीतम जैसे सोच की कंघी में से एक दंदा टूट गया जैसे समझ के कुर्ते का एक चीथड़ा उड़ गया जैसे आस्था की आँखों में एक तिनका चुभ गया नींद ने जैसे अपने हाथों में सपने का जलता कोयला पकड़ लिया नया साल कुछ ऐसे आया... जैसे दिल के फिकरे से एक अक्षर बुझ गया जैसे विश्वास के कागज पर सियाही गिर गयी जैसे समय के होंठों से एक गहरी साँस निकल गयी और आदमजात की आँखों में जैसे एक आँसू भर आया नया साल कुछ ऐसे आया... जैसे इश्क की जबान पर एक छाला उठ आया सभ्यता की बाँहों में से एक चूड़ी टूट गयी इतिहास की अँगूठी में से एक नीलम गिर गया और जैसे धरती ने आसमान का एक बड़ा उदास-सा खत पढ़ा नया साल कुछ ऐसे आया...