अमन कुमार परिंदों के कूकने, कूलने या चहचहाने की आवाज़ मुझे सोचने पर कर देती है मजबूर उनके फड़फड़ाने, दिवार से टकराने की आवाज़ दिवारें, दो वस्तुओं के बीच की नहीं बुलन्द इमारतों की खंडहर दिवारें शान्ति मिलती है इन भूतहा दिवारों में जैसे कोइ आत्मा, अस्तित्व तलाशती है दिवारों में आह! हवा का तेज़ और ठंडा झौंका भारी पत्थरों से टकराता हुआ धूल से जैसे कोई लिखता इबारत अपढ और रहस्यमयी इबारत पढ लेती है बस खंडहर इमारत घटनाओं - दुर्घटनाओं की कहानी पाप और पुण्य की अंतर कहानी इन दिवारों को लाॅघती हुई फैल जाती है दावानल की भाँति काल जिसे रोक नहीं पाता और इन कहानियों का, छोटी-बड़ी कहानियों का खंडहर हुई दिवारों का विशाल इतिहास बन जाता।