प्रतिमा रानी प्रवक्ता-हिन्दी कृष्णा काॅलेज, बिजनौर 'नारीवाद’ शब्द की सर्वमान्य परिभाषा देना कठिन कार्य हैं यह एक कठिन प्रश्न है राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के सोचने के तरीकों तथा उन विचारों की अभिव्यक्ति का है। स्त्री-विमर्श रूढ़ हो चुकी परम्पराओं, मान्यताओं के प्रति असंतोष तथा उससे मुक्ति पाने का स्वर है। स्त्री-विमर्श के द्वारा पितृक प्रतिमानों व सोचने की दृष्टि पर अनेक प्रश्नों द्वारा कुठाराघात करते हुए विश्व चिंतन में नई बहस को जन्म देता है। प्राचीन भारतीय समाज में स्त्री को देवी स्वरूप माना गया है। वैदिक काल में कहा भी गया है- ‘‘यत्र नार्यस्तु पूज्यते, तत्र रम्यते देवता’’ (वैदिक काल) परन्तु आम बोलचाल की भाषा में नारी को अबला ही कहा गया है। महान् साहित्यकारों ने भी नारी के अबला रूप को साहित्य में कुछ इस तरह वर्णित किया है। ‘‘हाय अबला तुम्हारी यही कहानी।’’ आँचल में है दूध आँखों में पानी।। (मैथिलीशरण गुप्त) महादेवी वर्मा ने नारी को कुछ इस प्रकार दर्शाया है। ‘‘मैं नीर भरी दुःख की बदरी।’’ ‘‘नारी-विमर्श को लेकर सदैव अल...