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क्रांति का बीजपत्र : आंचलिक पत्रकरिता

  - अरविंद कुमार सिंह ‘‘खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।’’ गंगा-यमुना और सरस्वती के संगम की रेती से जब ये क्रांतिकारी पंक्तियां अकबर इलाहाबादी की शायरी से जनमानस के दिलों में उतर रही थीं; तो प्रयाग वैसा नहीं था, जैसा आज दिखता है। तीर्थराज की यह धरती क्रांतिकारियों की संगम स्थली थी तो देश की राजनीति की एक प्रमुख धुरी। आनंद भवन, खुसरो बाग और कंपनी गार्डेन का अतीत भारत के महान क्रांतिकारियों की जीवंत कहानियों की कथाभूमि थी। राजकीय संग्रहालय की प्राचीरों के मध्य असंख्य साहित्य की अमर सर्जनाएं और कथाएं जन्मीं। जो देश और दुनिया के मानस पर पूरी आस्था और विश्वास के साथ आज भी जमी हैं और विश्वास है कि क़यामत तक लोगों के दिलों में स्पंदन करती रहंेगी। महान शायर अकबर इलाहाबादी ने ‘तोप’ जैसे घातक हथियार का भी मुकाबला ‘अख़बार’ से करने की बात की तो निश्चित ही इसमें ‘तोप’ से ज़्यादा घातक और मारक क्षमता होगी। अख़बार की यह क्षमता है कि वह व्यक्ति ही नहीं बल्कि व्यवस्था को बदल सकता है। तोप और गोली का लक्ष्य सीमित है लेकिन अख़बार समाज का मानस होता है। वह उसका शिक्षक और प

सुधीर कुमार ‘तन्हा’ की ग़ज़लों में सामाजिक यथार्थ/मंजु सिंह

उत्तर प्रदेश में जनपद बिजनौर के ग्राम सीकरी बुजुर्ग में जन्मे सुधीर कुमार ‘तन्हा’ ग़ज़ल कहते हैं और उनकी ग़ज़ल हिंदी-उर्दू के बीच की कड़ी लगती है। न तो ठेठ हिंदी और न ही ठेठ उर्दू। दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल में भी यही भाषा दिखाई देती है जो साहित्य के लिए बुरी नहीं बल्कि अच्छी बात है। बिजनौर के ही एक और विद्वान पं. पद्मसिंह शर्मा ने पहले पहल यह प्रयोग किया था। तब उनकी भाषा को कुछ विद्वानों ने उछलती कूदती भाषा कहा था तो कुछ विद्वानों ने उनकी भाषा को साहित्य के लिए बहुत अच्छा माना था। पंडित जी हिंदी से बहुत प्रेम करते थे परंतु वह अन्य किसी भाषा से या उसके शब्दों से द्वेष नहीं रखते थे। यही कारण है कि आज उनकी वही भाषा आम बोलचाल की भाषा बन गई है। कवि सुधीर कुमार ‘तन्हा’ भी ईष्र्या अर्थात् हसद को लाइलाज बीमारी मानते हुए इससे बचने की सलाह देते हैं- हसद बहुत ही बुरा मरज़ है, हसद से ‘तन्हा’ गुरेज़ करना। हर एक मरज़ की दवा है लेकिन, हसद की कोई दवा नहीं है।।1 ग़ज़ल ने अनेक प्रतिमान गढ़े हैं। आशिक और माशूक से निकल कर ग़ज़ल ने विषय विस्तार पाया है। आज ग़ज़ल हर विषय पर कही जा रही है। कवि सुधीर कुमार ‘तन्हा’ ने भी विभ

ग़ज़ल सम्राट: दुष्यंत कुमार

  अमन कुमार   आलोक कुमार  दुष्यंत कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश में जनपद बिजनौर के ग्राम राजपुर नवादा के जमींदार परिवार में 1 सितंबर 1933 को हुआ था। आपकी माता जी का नाम श्रीमती राम किशोरी देवी एवं पिता का नाम चैधरी भगवत सहाय था। कवि की प्रारंभिक शिक्षा गाँव की ही पाठशाला में हुई। 1948 में कवि ने एस.एन.एस.एम. हाई स्कूल नहटौर जनपद बिजनौर से दसवीं कक्षा पास कर 1950 में चंदौसी, मुरादाबाद के एस.एम. काॅलेज से इंटरमिडिएट किया। 1950-54 तक कवि ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्र रहते हुए बी.ए. और हिंदी साहित्य से एम.ए. किया। 1957-58 में कवि ने मुरादाबाद से बी.एड. किया। चंदौसी में 30 नवंबर 1949 को राजेश्वरी कौशिक से कवि का विवाह सम्पन्न हुआ। कवि ने सर्व प्रथम जनपद बिजनौर के क़सबे किरतपुर में नौकरी। कवि ने यहाँ एक विद्यालय में अध्यापकी की। यहाँ अध्यापकी करने के बाद ही मुरादाबाद से बी.एड. किया। तत्पश्चात आकाशवाणी दिल्ली के हिंदी वार्ता-विभाग में स्क्रिप्ट राइटर के रूप में कार्य किया। 1960 के अंतिम दिनों में कवि स्थानांतरण पाकर भोपाल पहुँचे। कवि ने मध्य प्रदेश के संस्कृत संचालनालय के अंतर्गत भाषा-विभाग

युवाओं के बीच बहुत लोकप्रिय हो रही लॉकडाउन : एक अनकही दास्ताँ

कोरोना काल में जहां समूचे विश्व समुदाय के लोग अपने-अपने घरों में सिमट कर बैठे थे वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जो घर बैठकर भी अपने कार्य को पूरी तन्मयता पूर्वक कर रहे थे।  मार्च महीने से भारत में लॉकडाउन हो गया उस दौरान सरकार के प्रतिदिन नए दिशानिर्देश आ रहे थे, विश्व स्वास्थ्य संगठन से रोज नई डरावनी जानकारियां आमजन के बीच पहुँच रही थीं। कोविड-19 नाम के इस वायरस का कब खात्मा होगा इसके बारे में कोई भी स्वास्थ्य संगठन या किसी भी देश की सरकार कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थी। इस वैश्विक महामारी के चलते प्रवासियों का पलायन अनवरत जारी था, बहुतेरों लोगों की दो वक्त की रोटियां तक इस वैश्विक महामारी ने छीन ली थी। पूरे मानव समाज को इस वैश्विक महामारी की वजह से हर तरह का नुकसान उठाना पड़ रहा था। समूचे विश्व में बस कयास की लगाए जा सकते थे कि आगे भविष्य में क्या होगा? सबको अपना भविष्य धुँधला ही नज़र आ रहा था एवं सब लोग हैरान तथा परेशान थे। आने वाले वर्षों में लोग इस वैश्विक महामारी को भूल नहीं पाएंगे एवं इसके बारे में आने वाली पीढियां जानना चाहेंगी लेकिन उन्हें सटीक जानकारी तभी मिल सकेगी जब लॉकडाउन एवं को

जल की अशुद्धता पर सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख

-अरविंद जयतिलक  यह उचित है कि देश की सर्वोच्च अदालत ने नदियों में बढ़ते प्रदूषण और उससे लोगों की सेहत पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को लेकर कड़ा रुख अख्तियार किया है। सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा है कि साफ पर्यावरण और प्रदूषण रहित जल व्यक्ति का मौलिक अधिकार है और इसे उपलब्ध कराना कल्याणकारी राज्य का संवैधानिक उत्तरदायित्व है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि संविधान का अनुच्छेद-21 जीवन का अधिकार देता है और इस अधिकार में गरिमा के साथ जीवन जीने और प्रदूषण रहित जल का अधिकार शामिल है। सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 47 और 48 में जन स्वास्थ्य ठीक करना और पर्यावरण संरक्षित करना राज्यों का दायित्व है। साथ ही प्रत्येक नागरिक का भी कर्तव्य है कि प्रकृति जैसे वन, नदी, झील और जंगली जानवरों का संरक्षण व रक्षा करे। गौर करें तो अदालत ने नदियों की सफाई से लेकर प्रकृति व पर्यावरण की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकारों के साथ-नागरिकों के लिए भी आवश्यक कहा है। उल्लेखनीय है कि चीफ जस्टिस एसए बोबडे, एएस बोपन्ना और वी रामासुब्रमणियम की बेंच ने यह टिप्पणी दिल्ली जल बोर्ड की हरियाणा से आ रहे पानी में प्रदूष

इन्द्रदेव भारती के गीतों में लोक भावना

  गीतकार इन्द्रदेव भारती ने, उत्तर प्रदेश के जनपद बिजनौर की तहसील नजीबाबाद के ग्राम लालपुर के संभ्रांत किसान पंडित अनूपदत्त शर्मा के ज्येष्ठ पुत्र मास्टर चिरंजीलाल शर्मा के कनिष्ठ पुत्र रत्न के रूप में 4 नवंबर 1945 को जन्म लिया। आपकी मातु श्री श्रीमती रक्षा देवी जी सीधी-सादी धर्म परायण महिला थीं। तख़्ती, बुतका, कलम और हिंदंी का ‘‘क़ायदा’’ पढ़ते हुए आपने एमए ;हिंदीद्ध, साहित्य रत्न ;हिंदीद्ध, बीएड, आईजीडी बंबई की कला परीक्षा जैसी शैक्षिक योग्यताएं प्राप्त कीं। 1961 में हाईस्कूल में पढ़ते-पढ़ते तुकबंदियों में बात कहने की आपकी अभिरुचि, आपको पैरोडी लिखने तक ले गई। आपके पिताश्री के प्राथमिक शिष्य रहे जिन्हें हिंदी ग़ज़ल सम्राट ‘‘दुष्यंत कुमार’’ के नाम से दुनिया जानती है, एक दिन अपने प्राथमिक गुरु जी से मिलने जब नजीबाबाद आए तो उन्होंने पैरोडी लिख रहे इन्द्रदेव शर्मा के अंदर पनप रहे ‘‘कवि’’ को पहचान इन्हें पैरोडी लिखना छोड़, कविता लिखने के लिए प्रेरित किया और समय-समय पर आते-जाते इनका समुचित मार्गदर्शन किया। 1965 में लायन्स क्लब नजीबाबाद के मंच पर आपने जनपदीय कवियों, हुक्का बिजनौरी, मुच्छड़ बिजनौरी, दी

विवेकी राय की कहानी ‘बाढ़ की यमदाढ़ में’ पत्रकारीय तत्व

  कोमल सिंह शोधार्थी (हिंदी) शोध केन्द्र राजकीय पी0जी0 काॅलेज, कोटद्वार, पौड़ी गढ़वाल श्रीनगर गढ़वाल विश्वविद्यालय पत्रकारिता का मूल तत्व है सूचना एकत्र कर उसका प्रसार करना ताकि दूसरे लोगों को सही जानकारी मिल सके। इसी तत्व के साथ पत्रकार की नैतिकता और समाचार की सत्यता व रोचकता समाचार संकलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चूंकि कहानीकार विवेकी राय एक पत्रकार भी थे इसलिए उनके कहानी साहित्य में पत्रकारिता की झलक स्पष्ट दिखाई दे जाती है। आलोचना के लिए उनकी कहानी ‘बाढ़ की यम दाढ़’ में कहानी को चुना गया है जो कहानीकार की पुस्तक ‘गूंगा जहाज’ में संकलित है। आलोच्य कहानी का आमुख किसी समाचार की भाँति ही अनोखा प्रतीत हो रहा है- ‘यदि यह कोई कहता कि बाढ़ का तमाम पानी जमकर ठोस चमचमाता हुआ पत्थर हो गया तो उतना आश्चर्य नहीं होता जितना यह सुन कर हुआ कि दूखनराम कोहार की सात सेर दूध देने वाली भैंस रात में किसी ने चुरा ली।’ उपरोक्त पंक्तियों में समाचार सी रोचकता बन गई है। कोई भी पाठक भैंस कहाँ गई? यह जानने के लिए समाचार की भाँति संपूर्ण कहानी पढ़ जाना पसंद करेगा। समाचार को विस्तार देने जैसा ही कहानीकार ने कहानी