- अरविंद कुमार सिंह ‘‘खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।’’ गंगा-यमुना और सरस्वती के संगम की रेती से जब ये क्रांतिकारी पंक्तियां अकबर इलाहाबादी की शायरी से जनमानस के दिलों में उतर रही थीं; तो प्रयाग वैसा नहीं था, जैसा आज दिखता है। तीर्थराज की यह धरती क्रांतिकारियों की संगम स्थली थी तो देश की राजनीति की एक प्रमुख धुरी। आनंद भवन, खुसरो बाग और कंपनी गार्डेन का अतीत भारत के महान क्रांतिकारियों की जीवंत कहानियों की कथाभूमि थी। राजकीय संग्रहालय की प्राचीरों के मध्य असंख्य साहित्य की अमर सर्जनाएं और कथाएं जन्मीं। जो देश और दुनिया के मानस पर पूरी आस्था और विश्वास के साथ आज भी जमी हैं और विश्वास है कि क़यामत तक लोगों के दिलों में स्पंदन करती रहंेगी। महान शायर अकबर इलाहाबादी ने ‘तोप’ जैसे घातक हथियार का भी मुकाबला ‘अख़बार’ से करने की बात की तो निश्चित ही इसमें ‘तोप’ से ज़्यादा घातक और मारक क्षमता होगी। अख़बार की यह क्षमता है कि वह व्यक्ति ही नहीं बल्कि व्यवस्था को बदल सकता है। तोप और गोली का लक्ष्य सीमित है लेकिन अख़बार समाज का मानस होता है। वह उसका शिक्षक और प