शिवपूजन सहाय मैं कहानी-लेखक नहीं हूँ। कहानी लिखने-योग्य प्रतिभा भी मुझ में नहीं है। कहानी-लेखक को स्वभावतः कला-मर्मज्ञ होना चाहिये, और मैं साधारण कलाविद् भी नहीं हूँ। किंतु कुशल कहानी-लेखकों के लिए एक 'प्लॉट' पा गया हूँ। आशा है इस 'प्लॉट' पर वे अपनी भड़कीली इमारत खड़ी कर लेंगे। मेरे गाँव के पास एक छोटा-सा गाँव है। गाँव का नाम बड़ा गँवारू है, सुनकर आप घिनाएँगे। वहाँ एक बूढ़े मुन्शीजी रहते थे अब वह इस संसार में नहीं है। उनका नाम भी विचित्र ही था - 'अनमिल आखर अर्थ न जापू' - इसलिए उसे साहित्यिकों के सामने बताने से हिचकता हूँ। खैर, उनके एक पुत्री थी, जो अब तक मौजूद है। उसका नाम - जाने दीजिये, सुनकर क्या कीजियेगा? मैं बताऊँगा भी नहीं! हाँ, चूँकि उनके संबंध की बातें बताने में कुछ सहूलियत होगी, इसलिए उसका एक कल्पित नाम रख लेना जरूरी है। मान लीजिये, उसका नाम है 'भगजोगनी'। दिहात की घटना है, इसलिए दिहाती नाम ही अच्छा होगा। खैर, पढ़िये - मुन्शीजी के बड़े भाई पुलिस-दरोगा थे, उस जमाने में, जब कि अंग्रेजी जाननेवालों की संख्या उतनी ही थी, जितनी आज धर्म-शास्त्रों के मर्म जान