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स्मृृतियों के कैनवास पर : स्व० हरिपाल त्यागी

      बाबा नागार्जुन की पंक्तियाँ, रह-रह कर स्मरण आ रही है    सादौ कगद हो भले, सादी हो दीवाल। रेखन सौ जादू मरे कलाकार हरिपाल।। इत उत दीखै गगंजल, नहीं जहां अकाल। घरा धन्य बिजनौर की, जहां प्रगटे हरिपाल।।   और हरिपाल अंकल का, मुस्कुराता चेहरा स्मृतियों के कैनवास पर, अनायास साकार हो रहा है। बिजनौर की धरती, साहित्य कला, राजनीति, पत्रकारिता आदि विभिन्न सन्दर्भ में, उर्वरा रही है। स्व० हरिपाल त्यागी का मुझ पर असीम स्नेह और आर्शीवाद रहा। अपने बचपन में ही, घर पर आने वाली, पत्र-पत्रिकाओं एवं पुस्तकों के माध्यम से बाल सुलभ जिज्ञासा के चलते शब्द ओर चित्रों का आकर्षण अपनी ओर खींचने लगा था। बचपन, अपने ननिहाल ग्राम पैंजनियाँ जनपद बिजनौर, उ0प्र0 में नाना श्री स्व0 शिवचरण सिंह के सरंक्षण में बीता। उनका स्थान, भारतीय स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी इतिहास में, अपना एक अलग महत्व रखता हैप्रख्यात पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी (कानपुर) की उन पर महती अनुकम्पा थी, और उन्हीं के माध्यम व निर्देश पर नाना श्री के गांव पैजनियाँ में काकोरी काण्ड के ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खाँ, अवनीकांत मुकंजी (मिदनापुर), राम

अल्लामा ताजवर नजीबाबादी

अल्लामा ताजवर नजीबाबादी (02 मई 1893-30 जनवरी 1951) का जन्म नैनीताल में हुआ। उनका पैतृक स्थान नजीबाबाद (उ.प्र.) था। वह शायर, अदीब, पत्रकार और शिक्षाविद थे। फ़ारसी व अरबी की आरम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद दारुलउलूम देवबंद से दर्से निज़ामिया की शिक्षा पूरी की। 1915 में पंजाब यूनिवर्सिटी से मौलवी फ़ाज़िल और मुंशी फ़ाज़िल के इम्तेहान पास किये। 1921 में दयालसिंह कालेज लाहौर में फ़ारसी और उर्दू के शिक्षक के रूप में नियुक्त हुए। उन्होंने 'हुमायूँ' और 'मख्ज़न' पत्रिकाओं में काम किया और 'अदबी दुनिया' और 'शाहकार' पत्रिकाएँ जारी कीं। उन्होंने 'उर्दू मरकज़' के नाम से संकलन एवं सम्पादन की एक संस्था भी स्थापित की। साभार- http://www.hindi-kavita.com/HindiAllamaTajvarNazibabadi.php

भीमराव आम्बेडकर

भीमराव रामजी आम्बेडकर[a] (14 अप्रैल, 1891 – 6 दिसंबर, 1956), डॉ॰ बाबासाहब आम्बेडकर नाम से लोकप्रिय, भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे।[1] उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया था।[2] वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री, भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माता थे।[3][4][5][6] आम्बेडकर विपुल प्रतिभा के छात्र थे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त कीं तथा विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में शोध कार्य भी किये थे।[7] व्यावसायिक जीवन के आरम्भिक भाग में ये अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे एवं वकालत भी की तथा बाद का जीवन राजनीतिक गतिविधियों में अधिक बीता। तब आम्बेडकर भारत की स्वतन्त्रता के लिए प्रचार और चर्चाओं में शामिल हो गए और पत्रिकाओं को प्रकाशित करने, राजनीतिक अधिकारों की वकालत करने और दलितों के लिए सामाजि