राममधारी सिंह ‘‘दिनकर’’ त्यागी ने एक जगह गीत की परिभाषा देते हुए कहा है- गीत क्या है? सिर्फ़ छंदों में सजाई, आदमी की शब्दमय तस्वीर ही तो। लेकिन, आदमी की शब्दमय तस्वीर तो साहित्य मात्र है। इसलिए, गीतों का महत्व मैं एक दूसरी तरह से आंकता हूं। साहित्य का सर्वश्रेष्ठ अंश कवित्व है और कवित्व उपन्यासों से अधिक कविता में और कविताओं में भी सबसे अधिक गीतों में रहता है। गीतों में सिमट कर बैठने वाला कवित्व साहित्य की चरम शक्ति का पर्याय होता है। उपन्यास कुछ सफल और कुछ असफल हो सकते हैं, खंड काव्य और महाकाव्य भी अंशतः सफल और अंशतः असफल हो सकते हैं, किंतु, गीतों में आधी सफलता और आधी असफलता की कल्पना नहीं की जा सकती-गीत या तो पूर्ण रूप से सफल होते हैं अथवा ये होते ही नहीं। गीतों से जिसे स्वयं आनंद नहीं मिलता, उसे उनका अर्थ समझाकर आनंदित करना बड़ा ही कठिन काम है। कई बार यह कार्य मुझसे नहीं हो पाता। गीतों में ऐसे संकेत होेते हैं जो बहुत दूर तक जाते हैं, उनके भीतर मनोदशाएं होेती हैं, जिनके पीछे अनुभूतियों का विशाल इतिहास पड़ा होता है, और सबसे बढ़कर तो यह कि उनके शब्दों की अदाएं ऐसी होती है...