पांडेय बेचन शर्मा उग्र (हमारे हवाई रिपोर्टर ने येन केन प्रकारेण आगरेवाले, दक्षिण अफरीक़ी, म्याऊँ-मुख, पड़पुड़गंडिस्ट प्रवर, पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी के उस भाषण की एक हस्तलिखित प्रति, बल्कि, एडवांस कापी पा ली है, जिसे वह राष्ट्रभाषा सम्मेलन के आगे भाखेंगे। हम भरपूर जिम्मेवारी के साथ उसे यहाँ उद्धत करते हैं।) साधु, सीधे, विश्वासी, महात्मा सभापतिजी, हिन्दी के अज्ञात लेखकों, घासलेट आन्दोलन के ज्ञानी समर्थको, विशाल भारत के परिवारियो और परिवारनियो! मैं जानता हूँ और मैं दावे के साथ जानता हूँ कि मुझसे ज्यादा इस राष्ट्र और इस भाषा में कोई भी नहीं जानता। यद्यपि मैं क्या जानता हूँ, यह जानना कोई मामूली काम नहीं। मैं जानता हूँ, भाई घासलेटमंडली को! कि यह राष्ट्रभाषा सम्मेलन है। यहाँ पर अखिल भारतीय राष्ट्र के विद्वान, साहित्यिक, श्रीमान और कलाकार एकत्र हैं। यहाँ पर विख्यात बंगाली विद्वान विराज रहे हैं जिनकी भाषा और जिनका साहित्यिक उत्कर्ष भारतवर्ष ही की नहीं, वरन् संसार की किसी भी भाषा के पीछे नहीं। यही बात मद्रासी, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं के एकत्र पंडितों की मातृभाषाओं के बारे