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साप्‍ताहिक शार्प रिपोर्टर का आजमगढ में लोकार्पण

आजमगढ़। आजमगढ़ जर्नलिस्ट फेडरेशन द्वारा महात्मा गांधी के 150वीं जयंती वर्ष पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन नेहरू हाल के सभागार में किया गया। गोष्ठी का विषय महात्मा गांधी और उनकी पत्रकारिता रहा। इस अवसर पर शार्प रिपोर्टर साप्ताहिक के गांधी विशेषांक का लोकार्पण भी किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में महामना मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी के निदेशक प्रो. ओमप्रकाश सिंह एवं मुख्यवक्त के रूप में जिलाधिकारी नागेन्द्र प्रसाद सिंह तथा विशिष्ट अतिथि पुलिस अधीक्षक प्रो. त्रिवेणी सिंह मौजूद रहे। इस वैचारिक संगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार व समाजवादी विचारक विजय नारायण ने किया। संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए मुख्य वक्ता जिलाधिकारी नागेन्द्र प्रसाद सिंह ने कहा कि गांधी के राम साम्राज्यवादी नहीं, बल्कि समानता पर आधारित स्वायत्त फेडरेशन को स्थापित करते हैं। आज यहीं फेडरेशन कि अवधारणा उदारवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था कि आत्मा है। जिसके प्रथम अवधारक हजारांे वर्ष पूर्व चक्रवर्ती उदार सम्राट राम रहे है। उन्होने चर्चा को आगे बढ़ाते हुये कहा कि गांधी ...

ग्रामीण भारत में हो रहा है बदलाव : धर्मपाल सिंह

धर्मपाल सिंह राजपूत सेवानिवश्त शिक्षक हैं और सेवानिवश्ति के बाद राजनीति में सक्रिय हैं। आप वर्तमान में 'अखिल भारतीय हिंदू शक्ति दल' उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष हैं। आपका मानना है कि ग्रामीण भारत बहुत तेजी से बदल रहा है और यह बदलाव अच्छा है। प्रस्तुत है उनसे आलोक त्यागी द्वारा की गई बात के अंश-  सवाल- ग्रामीण भारत किसे कहेंगे? जवाब- जो भारत गाँवों में बसता है, वही तो ग्रामीण भारत है।  सवाल- ग्रामीण भारत को किस नजरिए से देखते हैं? जवाब- ग्राम और कृषि भारत के विकास को निर्धारित करता है। ग्रामीण भारत में कृषि महत्वपूर्ण आय का साधन है। इसके बावजूद ग्रामीण जनसंख्या समृद्धि की ओर बढ़ रही है। आज किसान तमाम खर्च राक कर अपने बच्चों को पढ़ा रहा है और यही पढ़ाई अतिरिक्त रोजगार के अवसर उपलब्ध कराकर ग्रामीण भारत को समृद्ध कर रही है।  सवाल- आजादी के बाद किसान की आय उसकी खेती की वजह से कितनी बढ़ी है? जवाब- आजादी के बाद सरकार द्वारा भूमि सुधार कानूनों को बनाने और  क्रियान्यवन करने से काफी बदलाव आया है। अधिक कृषि योग्य सरकारी भूमि निर्धनों और जरूरतमंद खेतीहरो को आजीविका के लिए वितरित की गई। य...

तेलुगु भाषा और साहित्य की समग्र झाँकी 

  प्रख्यात जर्मन दार्शनिक हेगेल (जिन्हें हिंदी वाले प्यार से हीगल कहते हैं) कहा करते थे कि पुस्तक की भूमिका स्वरूप लिखे गए उनके वक्तव्य को गंभीरता से न लिया जाए क्योंकि मुख्य है उनकी कृति। लेकिन उनके विपरीत फ्रेंच दार्शनिक जाक देरिदा ने कहा कि भूमिका-लेखन कृति के पाठ के पश्चात तैयार किया गया वक्तव्य है जो कृति से पहले पढ़ा जाता है। उन्होंने भूमिका-लेखन से परहेज किया और माना कि प्रस्तुत कृति उनकी अगली कृति की भूमिका है और उनका समस्त लेखन भूमिकाओं की एक अखंड शृंखला।  गुर्रमकोंडा नीरजा की इस कृति 'तेलुगु साहित्य: एक अंतर्यात्रा' के प्रथम पाठ से ये दो विचारक और उनके विचार अनायास  सामने आते हैं।  इस कृति में लेखिका द्वारा दी गई कोई भूमिका नहीं है किंतु समस्त टेक्स्ट उस भूमिका का साधिकार और समर्थ निर्वाह है। भूमिका स्वरूप चार विद्वानों - प्रो.राज मणि शर्मा, प्रो. देवराज, प्रो. योगेंद्र नाथ शर्मा 'अरुण' और प्रो. एम. वेंकटेश्वर -  के अभिमत और पाठ हैं जिनसे एक और पाठकीय पाठ तैयार हो सकता है। प्रो. ऋषभदेेेव शर्मा की षष्ठिपूर्ति के अवसर पर उन्हें यह कृति सादर भेंट की गई है।...