डाॅ0 गीता वर्मा एसोसिऐट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, बरेली कालेज, बरेली। “नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में। पीयूशस्त्रोत सी बहा करो, अवनि और अम्बर तल में।।“ महिलाएं पत्रकारिता में मानवीय पक्ष को उजागर करती हैं। जय शंकर प्रसाद के अनुसार ‘नारी की करुणा अंतर्जगत का उच्चतम बिंब है जिसके बल पर समस्त सदाचार ठहरे हुए है’। आकाश की ऊँचाइयों पर प्रगति के पर फैलाकर नारी आश्चर्यजनक उड़ान भरने लगी है। हमें उस पर गर्व है परंतु प्रगति का अर्थ अपनी मर्यादा तथा संस्कृति को भूलना नहीं है। आधुनिकता की शर्मनाक आग से अपने को बचाकर रखना भारतीय नारी की प्रथम जिम्मेदारी है। प्राचीनकाल से नारी और लज्जा का अटूट संबंध रहा है यहाँ तक कि शास्त्रों में लज्जा को नारी का आभूषण माना गया हैं भारतीय “नारी“ शब्द से एक सुंदर सी कंचन काया की साम्राज्ञी लजती सकुचाती सी एक संपूर्ण स्त्री की छवि आँखों के समक्ष उभर कर आती है। जिस नारी के हर भाव में मोहकता है, मादकता नहीं। आकर्षण है, अंगडाई नहीं। जिस्म के उतार-चढ़ाव को उसके आँचल में महसूस कर सकते हैं, उसके लिए दिखावे की कोई आवश्यकता नहीं परंतु अब ...