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एक बूँद

अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध ज्यों निकल कर बादलों की गोद से थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी सोचने फिर-फिर यही जी में लगी, आह ! क्यों घर छोड़कर मैं यों बढ़ी? देव मेरे भाग्य में क्या है बढ़ा, मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में ? या जलूँगी फिर अंगारे पर किसी, चू पडूँगी या कमल के फूल में? बह गयी उस काल एक ऐसी हवा वह समुन्दर ओर आई अनमनी एक सुन्दर सीप का मुँह था खुला वह उसी में जा पड़ी मोती बनी। लोग यों ही हैं झिझकते, सोचते जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें बूँद लौं कुछ और ही देता है कर।

मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ

भगवतीचरण वर्मा   मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ अपने प्रकाश की रेखा तम के तट पर अंकित है निःसीम नियति का लेखा देने वाले को अब तक मैं देख नहीं पाया हूँ, पर पल भर सुख भी देखा फिर पल भर दुख भी देखा। किस का आलोक गगन से रवि शशि उडुगन बिखराते? किस अंधकार को लेकर काले बादल घिर आते? उस चित्रकार को अब तक मैं देख नहीं पाया हूँ, पर देखा है चित्रों को बन-बनकर मिट-मिट जाते। फिर उठना, फिर गिर पड़ना आशा है, वहीं निराशा क्या आदि-अन्त संसृति का अभिलाषा ही अभिलाषा? अज्ञात देश से आना, अज्ञात देश को जाना, अज्ञात अरे क्या इतनी है हम सब की परिभाषा? पल-भर परिचित वन-उपवन, परिचित है जग का प्रति कन, फिर पल में वहीं अपरिचित हम-तुम, सुख-सुषमा, जीवन। है क्या रहस्य बनने में? है कौन सत्य मिटने में? मेरे प्रकाश दिखला दो मेरा भूला अपनापन।

आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे

अदम गोंडवी   आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे अपने शाहे-वक़्त का यूँ मर्तबा आला रहे तालिबे-शोहरत हैं कैसे भी मिले मिलती रहे आए दिन अख़बार में प्रतिभूति घोटाला रहे एक जन सेवक को दुनिया में अदम क्या चाहिए चार छह चमचे रहें माइक रहे माला रहे

फूल का जीवन

रश्मि अग्रवाल शस्य श्यामला धरती, सबका ही दुःख हरती। इसलिए तो ... पतझड़ मुझको कभी ना भाता, भाता हरियाली से नाता। खिली-अधखिली कलियाँ होतीं, जब अपने यौवन पर... कोई पत्तों की गोद में हँसती, कोई पत्तों के ऊपर, कोई जब खिल फूल हुई, हमसे तब एक भूल हुई । रूप-सुगन्ध के वशीभूत हो, हमने तोड़ा दम से ... एक फूल खिला, जो तेज़ हवा से लड़कर जीता- और उपवन महकाया, एक हार गया और गिरा ज़मीं पर, जल्दी ही मुरझा गया। मैं छुई-मुई सी, खड़ी-खड़ी सब देख रही थी, सोच रही थी, मन ही मन ... जग को सुरभित करने वाला फूल .... तेरा-भी क्या जीवन?

साप्‍ताहिक शार्प रिपोर्टर का आजमगढ में लोकार्पण

आजमगढ़। आजमगढ़ जर्नलिस्ट फेडरेशन द्वारा महात्मा गांधी के 150वीं जयंती वर्ष पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन नेहरू हाल के सभागार में किया गया। गोष्ठी का विषय महात्मा गांधी और उनकी पत्रकारिता रहा। इस अवसर पर शार्प रिपोर्टर साप्ताहिक के गांधी विशेषांक का लोकार्पण भी किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में महामना मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी के निदेशक प्रो. ओमप्रकाश सिंह एवं मुख्यवक्त के रूप में जिलाधिकारी नागेन्द्र प्रसाद सिंह तथा विशिष्ट अतिथि पुलिस अधीक्षक प्रो. त्रिवेणी सिंह मौजूद रहे। इस वैचारिक संगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार व समाजवादी विचारक विजय नारायण ने किया। संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए मुख्य वक्ता जिलाधिकारी नागेन्द्र प्रसाद सिंह ने कहा कि गांधी के राम साम्राज्यवादी नहीं, बल्कि समानता पर आधारित स्वायत्त फेडरेशन को स्थापित करते हैं। आज यहीं फेडरेशन कि अवधारणा उदारवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था कि आत्मा है। जिसके प्रथम अवधारक हजारांे वर्ष पूर्व चक्रवर्ती उदार सम्राट राम रहे है। उन्होने चर्चा को आगे बढ़ाते हुये कहा कि गांधी

कुदरत से गिला नहीं

    मै नवीन कुमार, वर्ग स्नातकोत्तर उतरार्द्ध हिन्दी का छात्र हूँ जो उत्तरप्रदेश राज्य के बिजनौर जनपद के नजीबाबाद शहर में साहू जैन कॉलेज में अध्ययन कर रहा हूँ। मेरा जन्म 10.12.1995 को दिन गुरूवार को एक साधारण परिवार में, जो कि बिहार राज्य के माँ जानकी का जन्म स्थान सीतामढ़ी जनपद के रामनगरा गाँव के निवासी रामनाथ प्रसाद के पुत्र के रूप में हुआ। मेरे जन्म के पश्चात् मेरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई क्योंकि घर में एक विशेष बच्चे के रूप में जन्मा, विशेष का तात्पर्य यह है कि उस समय समान्य बच्चों की तुलना में मेरा सिर बड़ा तथा हाथ-पैर छोटे-छोटे के साथ उन मांसपेशियों पर कई सारे गांठे थे जिसे प्रतीत होता था कि यह बच्चा छोटे कद का होगा। पर दुर्भाग्य यह हुआ कि गाँव के क्षेत्र में अगर विशेष बच्चें का जन्म होता है चाहे वह दिव्यांग हो अथवा कद से छोटा उन्हें तथा उनके परिवार को अपमान, तिरस्कार सहन करना पड़ता है। उनमें से हम एक थे जो शारीरिक रूप अक्षम व्यक्ति था पर मानसिक रूप से नही। समय की गति तेजी से बढ़ी लगभग 3 साल मै अपने पैरों से चल नही पाया था, इसका कारण यह था कि मेरे शरीर का वजन अधिक होने के

मूँछ पदारथ सिंह ने बसाया था जलालाबाद

  जनपद बिजनौर के अन्तर्गत नजीबाबाद तहसील में नगरपालिका पंचायत जलालाबाद स्थित है। फिल्म जगत में प्रसिद्ध लेखक अख़्तरउल ईमान की भी यही जन्मभूमि है। अख़्तरउल ईमान ने अनेक सफल फिल्मों के डायलाग लिखे हैं। कहा जाता है कि जलालाबाद को मुगल शासनकाल में मूँछ पदारथ सिंह ने बसाया था। उस समय तक नजीबाबाद का कोई अस्तित्व भी नहीं था। बाद में इसी जलालाबाद को मुरादाबाद जिले का परगना भी बनाया गया। लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री अपनी पुस्तक 'क्षत्रिय जातियों को उत्थान-पतन' में लिखते हैं-   जिस समय मुगलसम्राट अकबर अपने समकालीन राजाओं और राज्यों को रौंदता-कुचलता हुआ बढ़ता चला जा रहा था। उस समय उच्चाकांक्षाओं से प्रेरित होकर जिंद राज्य में गोहाना के समीपस्थ रामरायपुर ग्राम को छोड़ कर कुछ काकराणा वंशी जाट अपने बसरू सिंह नेता के नेतृत्व में देहली की ओर चल निकले। वह बहादुरगढ़ में आ बसे। यहँा इन्होंने अपने प्रतिद्वन्दी भट्टी राजपूतों से बदला लेने के लिए शाही सेना की सेवाएँ स्वीकार कर लीं। दूल्हा भट्टी की कमान में लड़ने वाली सेनाओं के साथ युद्धग्रस्त रह कर इन्होंने अपनी राजरसिकता से अपने वंश की प्रतिष्ठा को बहुत उन