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21वीं सदी के कथा साहित्य में किन्नरों के प्रति समाज का वर्तमान दृष्टिकोण 

रिंकी कुमारी  पीएचडी शोधार्थी                 हिंदी विभाग, त्रिपुरा विश्वविद्यालय इस जगत में वंशाकुल की वृद्धि के लिए प्रकृति ने स्त्री-पुरुष का निर्माण किया है, समाज में इसे दो लिंगी नाम से पहचान मिली है। परंतु समाज में एक और वर्ग उपस्थित है, जिसमें शारीरिक रूप से लैंगिक विकलांग हैं जिन्हें किन्नर, हिजड़ा, तृतीयलिंग, उभयलिंगी आदि के नामों से पहचानी जाती है। इस वर्ग को हमेशा से ही समाज द्वारा उपेक्षित किया जाता है रहा है। 'हिजड़ा' शब्द हमारे समाज का सबसे अभिशापित शब्द माना जाता रहा है, लेकिन यही शब्द किसी व्यक्ति विशेष या समुदाय विशेष के लिए संबोधन किया जाता है। मानवता की भावना से विचार किया जाए तो उन के दिलो-दिमाग़ में अपने प्रति क्या विचार आते होंगे? उनकी अंतरात्मा अपने आप से क्या कहती होगी? यह प्रश्न उस समाज से है जो इस जगत में शराफत का चोला ओढ़े हुए है। क्यों इन्हें इस समाज से वाहिष्कृत कर उनकी दुनिया अलग मान बैठे हैं। समाज क्यों यह भूल जाता है कि ये लोग किसी दूसरे ग्रह से नहीं आए हैं बल्कि हमारे ही समाज के एक अंग हैं, वे देखने में भी एलिएन नहीं लगते, उनकी शारीरिक बनावट भी हमार