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सात ग़ज़लेें

अल्लामा ताजवर नजीबाबादी 1. बम चख़ है अपनी शाहे रईयत पनाह से   बम चख़ है अपनी शाहे रईयत पनाह से इतनी सी बात पर कि 'उधर कल इधर है आज' । उनकी तरफ़ से दार-ओ-रसन, है इधर से बम भारत में यह कशाकशे बाहम दिगर है आज । इस मुल्क में नहीं कोई रहरौ मगर हर एक रहज़न बशाने राहबरी राहबर है आज । उनकी उधर ज़बींने-हकूमत पे है शिकन अंजाम से निडर जिसे देखो इधर है आज । (२ मार्च १९३०-वीर भारत (लाहौर से छपने वाला रोज़ाना अखबार) (रईयत पनाह=जनता को शरण देने वाला, दार-ओ-रसन=फांसी का फंदा, कशाकशे- बाहम दिगर=आपसी खींचतान, रहरौ=रास्ते का साथी, रहज़न=लुटेरा, ज़बींने=माथा,शिकन=बल)   2. ऐ आरज़ू-ए-शौक़ तुझे कुछ ख़बर है आज   ऐ आरज़ू-ए-शौक़ तुझे कुछ ख़बर है आज हुस्न-ए-नज़र-नवाज़ हरीफ़-ए-नज़र है आज हर राज़दाँ है हैरती-ए-जलवा-हा-ए-राज़ जो बा-ख़बर है आज वही बे-ख़बर है आज क्या देखिए कि देख ही सकते नहीं उसे अपनी निगाह-ए-शौक़ हिजाब-ए-नज़र है आज दिल भी नहीं है महरम-ए-असरार-ए-इश्क़ दोस्त ये राज़दाँ भी हल्क़ा-ए-बैरून-ए-दर है आज कल तक थी दिल में हसरत-ए-अज़ादी-ए-क़फ़स आज़ाद आज हैं तो ग़म-ए-बाल-ओ-पर है आज   3. ग़म-ए-मोहब्बत में दिल के