डॉ. चन्द्रकला साहित्य की इस विविधता भरी दुनिया में जहाँ एक तरफ नित्य नए संचार माध्यमों के प्रयोग ने विषयों के तर्कयुक्त, युक्तिसंगत पठन- पाठन, व विमर्शों को तीव्र गति दी है। साएबर जगत से इस परिवर्तन ने ही आज् के विदयार्थियों को जिस तरह से जागरूक किया है। उससे यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि वर्तमान समय में कक्षा में पढाये जाने वाले पाठ से छात्र को जोडने के साथ उसके अन्दर के सृजनात्मक लोक से भी परिचय कराया जाय। तकनीकी शिक्षा व नई शिक्षा- नीति से उत्पन्न इस चुनौती का सामना वर्तमान शिक्षाविदों एंव अध्यापकों को भी करना है। उन्हें पाठ्य- पुस्तकों को रोचक ढंग से पढने और पढाने की परिपाटी पर नये सिरे से विचार करने की भी आवश्यकता है। आज यह वर्तमान समय की मांग और आवयश्कता भी है। कारण भी स्पष्ट है। -जहाँ एक तरफ स्कूली शिक्षा बहुत पहले ही इस बदलाव से अपने को जोड चुकी है। वहीं कालेजों में विशेष कर हिन्दी में यह सारा दायित्व किताबों ने ही उठा रखा हैं। -आज यदि प्रमाणिक पाठ उपलब्ध नहीं है, या पुस्तक ही प्रिंट में नही है तो उसकी सामग्री किसी साईट पर नही मिलेगी। हिन्दी में इस दिशा में कार्य ही कुछ स...