- इन्द्रदेव भारती बोलो हिन्दुस्तान """""""""""""""""""""""""""""" " बोलो हिन्दुस्तान कहाँ तक, कितनी हिंसा और सहोगे । आज अगर चुप बैठे तो कल, कहने लायक नहीं रहोगे । बारूदी शब्दों की भाषा, किसनेआखिर क्यूँ बोली है । अंबर ने बरसाये पत्थर, धरती ने उगली गोली है । प्यार के गंगाजल में कैसे, नफरत का तेज़ाब घुला है । गौतम, गाँधी का ये आंगन, सुबह लहू से धुला मिला है । किस षड्यंत्री ने फेंकी है, षड्यंत्रों की ये चिंगारी । गलियों, सड़कों, चौराहों पे, मौत नाचती है हत्यारी । यहीं जन्म लेकर के आखिर, कहो अकारण क्यूँ मर जाएं । क्यूँ अपना घर,गली,ये बस्ती, छोड़ वतन हम कहाँपे जायें । कहाँपे जायें ? कहाँपे जायें ? कहाँपे जायें ? कहाँपे जायें ? ...