- इन्द्रदेव भारती
बोलो हिन्दुस्तान
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बोलो हिन्दुस्तान कहाँ तक,
कितनी हिंसा और सहोगे ।
आज अगर चुप बैठे तो कल,
कहने लायक नहीं रहोगे ।
बारूदी शब्दों की भाषा,
किसनेआखिर क्यूँ बोली है ।
अंबर ने बरसाये पत्थर,
धरती ने उगली गोली है ।
प्यार के गंगाजल में कैसे,
नफरत का तेज़ाब घुला है ।
गौतम, गाँधी का ये आंगन,
सुबह लहू से धुला मिला है ।
किस षड्यंत्री ने फेंकी है,
षड्यंत्रों की ये चिंगारी ।
गलियों, सड़कों, चौराहों पे,
मौत नाचती है हत्यारी ।
यहीं जन्म लेकर के आखिर,
कहो अकारण क्यूँ मर जाएं ।
क्यूँ अपना घर,गली,ये बस्ती,
छोड़ वतन हम कहाँपे जायें ।
कहाँपे जायें ? कहाँपे जायें ?
कहाँपे जायें ? कहाँपे जायें ?
- इन्द्रदेव भारती
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