मुद्राराक्षस कितनी लंबी और तीखी मार होती है फिर वह चाहे मौसम की हो या सिपाही की। चौंक कर उड़ी फड़फड़ाती हुई चील की तरह रज्जन की तकलीफ भरी हुई एक सदा-सी सुन पड़ी… 'ओ माँ...' नत्थू के हाथ कमर में बँधे कपड़े के छोर से बनाई छोटी-सी पोटली पर इस कदर ढीले पड़ गए कि पोटली उसके बदन का हिस्सा जैसी तड़कती हुई तकलीफ भरी वह चीख ज्यादा लंबी नहीं थी लेकिन नत्थू की पसलियों के अंदर बहुत दूर तक और देर तक लकीर-सी खींचती चली गई। कितनी लंबी और तीखी मार होती है फिर चाहे वह मौसम की हो या सिपाही की। जून की इस बहुत तीखी और बहुत ज्यादा चढ़े बुखार की तरह बेआवाज धूप में नत्थू जहाँ ठिठक गया था, वहाँ से सिर्फ कुछ कदम आगे ही उसके मकान की पिछली दीवार थी। कच्ची मिट्टी से खड़ी की गई उस दीवार पर सफेद सीपियाँ और घोंघे इस तरह उभर आए थे गोया वे वहाँ जड़ दिए गए हों। उस सफेद पच्चीकारी के बीच पानी की धार से कटी मिट्टी की सँकरी खड़ी धारियाँ जाहिर कर रही थीं कि मौसम की अगली मार पड़ते ही दीवार गल कर गिर जाएगी। शायद इस दीवार के गिरने पर भी वैसी ही दहलाने और भद्दी आवाज हो जैसी आवाज इस बार रज्जन की सुनाई दी थी।