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एक लड़का

अख़्तर-उल-ईमान   दयार-ए-शर्क़ की आबादियों के ऊँचे टीलों पर कभी आमों के बाग़ों में कभी खेतों की मेंडों पर कभी झीलों के पानी में कभी बस्ती की गलियों में कभी कुछ नीम उर्यां कमसिनों की रंगरलियों में सहर-दम झुटपुटे के वक़्त रातों के अँधेरे में कभी मेलों में नाटक-टोलियों में उन के डेरे में तआक़ुब में कभी गुम तितलियों के सूनी राहों में कभी नन्हे परिंदों की नहुफ़्ता ख़्वाब-गाहों में बरहना पाँव जलती रेत यख़-बस्ता हवाओं में गुरेज़ाँ बस्तियों से मदरसों से ख़ानक़ाहों में कभी हम-सिन हसीनों में बहुत ख़ुश-काम ओ दिल-रफ़्ता कभी पेचाँ बगूला साँ कभी ज्यूँ चश्म-ए-ख़ूँ-बस्ता हवा में तैरता ख़्वाबों में बादल की तरह उड़ता परिंदों की तरह शाख़ों में छुप कर झूलता मुड़ता मुझे इक लड़का आवारा-मनुश आज़ाद सैलानी मुझे इक लड़का जैसे तुंद चश्मों का रवाँ पानी नज़र आता है यूँ लगता है जैसे ये बला-ए-जाँ मिरा हम-ज़ाद है हर गाम पर हर मोड़ पर जौलाँ इसे हम-राह पाता हूँ ये साए की तरह मेरा तआक़ुब कर रहा है जैसे मैं मफ़रूर मुल्ज़िम हूँ ये मुझ से पूछता है अख़्तर-उल-ईमान तुम ही हो ख़ुदा-ए-इज़्ज़-ओ-जल की नेमतों का मो'तरिफ़ हूँ मै...

भीमराव आम्बेडकर

भीमराव रामजी आम्बेडकर[a] (14 अप्रैल, 1891 – 6 दिसंबर, 1956), डॉ॰ बाबासाहब आम्बेडकर नाम से लोकप्रिय, भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे।[1] उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया था।[2] वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री, भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माता थे।[3][4][5][6] आम्बेडकर विपुल प्रतिभा के छात्र थे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त कीं तथा विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में शोध कार्य भी किये थे।[7] व्यावसायिक जीवन के आरम्भिक भाग में ये अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे एवं वकालत भी की तथा बाद का जीवन राजनीतिक गतिविधियों में अधिक बीता। तब आम्बेडकर भारत की स्वतन्त्रता के लिए प्रचार और चर्चाओं में शामिल हो गए और पत्रिकाओं को प्रकाशित करने, राजनीतिक अधिकारों की वकालत करने और दलितों के लिए सामाजि...