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अंतिम दशक की हिंदी कविता और स्त्री

स्वाति किसी भी काल का साहित्‍य अपने समाज और परिवेश से कटकर नहीं रह सकता। साहित्य की प्रत्‍येक काल विशेष की रचनाओं में हम उस काल विशेष की सामाजिक स्थिति, परिवेश एवं उस परिवेश में रहने वाले लोगों की इच्‍छाओं एवं आकांक्षाओं को अभिव्‍यक्ति होते पाते हैं। कविता मनुष्य की अनुभूतियों को सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान करने का माध्यम है। कविता के माध्यम से कवि समाज में निहित सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक एवं सांस्कृतिक समस्याओं व विडंबनाओं पर प्रहार करने में सक्षम होता है। बात अगर स्त्री की कि जाए तो आदिकाल से वर्तमान युग तक की कविताओं में स्त्री अपनी उपस्थिती दर्ज कराती आयी है। फर्क सिर्फ यह है की पहले स्त्रियाँ पुरुषों की कविताओं मे दिखाई देती थी,अब खुद अपनी कविताएँ रचती हैं इतना ही नहीं अपने आत्मसम्मान एवं अस्मिता को पाने में निरंतर प्रयासरत हैं। प्रत्येक काल में स्त्रियों को देखने की दृष्टियाँ अलग-अलग रही हैं जैसे-भक्तिकाल में स्त्री को माया, ठगिनी के रूप में प्रस्तुत किया जाता था या मोक्ष के मार्ग में बाधा के रूप में वहीं आदिकाल में स्त्रियों को पाने के लिए किस प्रकार युद्ध होते थे उनका वर्णन हमें देख