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दुद्दा की कुल्फ़ी


मनोज कुमार त्यागी


असौज की विदाई पर कार्तिक माह दस्तक दे रहा था। हल्की-हल्की ठंड पड़ने लगी थी। शहर में जहाँ आठ बजे के बाद रात शिद्दत से जागती है, वहीं गाँव सो जाता है। सपनों को आच्छादित करता कोहरा, मोतियों को मात देती ओस की बूंदे, चप्पे-चप्पे को सराबोर करती चाँदनी मानो गाँव को शोभा प्रदान कर रही हो। 
जब तेजस शहर से वापस गाँव आ रहा था तो दूर से उसे आग जलती दिखाई पड़ी थी।
गाँव में बिजली तो आ गई थी पर उसे आँख मिचैली वाला खेल खूब भाता था। आठ बजने को थे, पूरा गाँव खर्राटे भर रहा था। वहीं एक वृद्ध जोड़ा अलाव के पास आग ताप रहा था। जोड़े को देख कर तेजस मुस्कराने लगा। 
वह जानता था कि बूढ़ा सुमेर सिंह, बूढ़ी जसप्रीत देर रात तक बातें करते रहते हैं। बूढ़े के कानों से बातें टकराकर अटक जातीं, कुछ बातें वो एकदम सुन लेता। वहीं बूढ़ी ज़रा सी फुसफुसाहट को भी ध्वनि में परिवर्तित कर देती। बूढ़ा पढ़ा-लिखा परंतु एकदम खांटी किसान था।
तेजस चुपचाप खड़ा होकर उनकी बातें सुनता जो कहानियों की तरह होतीं। लगता जैसे किसी ने उनके संवाद स्क्रिप्ट की तरह लिखकर दे दिए हों। शुरु में तो वो धोखा खा गया था जब उसने शहर से आकर गाँव में रहने का निर्णय लिया था। बिजनेस से पैसा कमाया प्रदूषण से घबरा कर गाँव में खेती की ज़मीन ख़रीद ली। कुछ में अमरूद, आम का बाग़ तो कुछ ज़मीन में गन्ने, गेहँू की खेती। एक दम ठेठ किसान की तरह। 
गांव में बसने से पहले उसकी भेंट सुमेर सिंह से ही हुई थी। उसे रहने के लिए घर की ज़मीन की तलाश थी जो सुमेर सिंह के घर के पास ख़ाली पड़ी थी। उसने जैसे ही चैधरी साहब से पूछा तो कुछ देर तक वो उन्हें देखता रहा क्योंकि उनके चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। तभी अंदर से बूढ़ी निकल आई थी उसने इशारे से बताया कि बूढ़ा बहरा था। तेजस ने चिल्लाकर पूछा ''मुझे घर के लिए ज़मीन चाहिए''। 
हाँ ...हाँ ये पड़ी मकान बना लो और हाँ मैं बहरा नहीं हूँ...जो इतनी ज़ोर से बोल रहे हो...जी ठीक है मैं मकान तो बना लूँगा पर पैसे ...बैनामा ...तेजस ने जानना चाहा।'
'क्या-क्या कहा तुमने? तुम कुछ बड़बड़ा रहे थे।' बूढ़े ने बात अनसुनी करते हुए पूछा। तभी बूढ़ी ने उसे अंदर बैठायाकृ...चाय के साथ-साथ उसने अपने और बूढ़े के बारे में बताया, सुनकर तेजस के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई थी। उसका घर उनके बराबर बन गया उसे आज भी याद है पहली बार उसे देखकर बूढ़ी की आँखें नम हो गई थीं। 
तेजस आज भी अकेले में जब उस घटना को याद करता है तो अनायास ही उसके चेहरे पर मुस्कुराहट खेल जाती है। 
जब पहली बार घर बनाने के लिए पैसों का जुगाड़ करके वो गाँव आया था तो रात हो चुकी थी। दोनों अलाव ताप रहे थे। तेजस दूर खड़ा होकर उनकी बाते सुनने लगा। ''कुल्फ़ी सुनती हो'' बूढ़ा धीरे से बोला। कुल्फ़ी ने जवाब दिया 'हूँ।' तेजस चक्कर काट गया था। इसका मतलब बूढ़ा बहरा नहीं था। चालू बंदा था, गाँव में उसका नाम सुनबहरा ठीक ही रख दिया था। वो थोड़ा आगे बढ़ा एक पेड़ की आड़ में खड़ा हो गया। 
''कुल्फ़ी तैन्ने रोटी ख़ाली।'' 
''हाँकृ...हाँ ख़ाली तेरी समझ नहीं आता। इस बखत रोज़ ही खा लेते हैं।''
''...आएं क्या कहा तूने, ख़ाली कि नहीं।''
''हाँ ...हाँ बहरे ख़ाली, खुद तो पहले ही थूर लेता है तब तो पूछता नहीं जब जब सारा गाँव सो रहा है पूछता है खाई कि नहीं। ...हे भगवान् क्या करुं इसका?'' बूढ़ी ने अपने सिर पर हाथ मारा। 
तेजस की समझ में नहीं आ रहा था कि मामला क्या है, तभी बूढ़ी ने बूढ़े के गोड्डे पर दो बार ठक-ठक की, 'अच्छा ख़ाली, पहले नहीं बता सकती थी।'
'अरे सुनती है ...।'
'हाँ...हाँ अब क्या?' उसने गोड्डे पर एक बार ठक की। 'तेजस नहीं आया।'
'क्या पता कि वो आएगा या नहीं।' उसके गोड्डे पर तीन बार ठक-ठक की गुस्सा कर अंदर चली गई।
'ले बता नाराज़ होकर चली गई ...अरी भागवान् तेरे अलावा मेरा है ही कौन?'
तेजस चुपचाप बूढ़े के पास बैठ गया उसने बूढ़े के हाथ अपने हाथों  में ले लिए। बूढ़े को एक अजीब सी छुअन दूर तक छू गई थी। वो पहली रात आज भी नहीं भूला है जब रात को सोते हुए बूढ़े ने उसे दो बार लिहाफ़ ओढ़ाया था उसे सोते-सोते लिहाफ़ उघाड़ने की आदत थी। 
पक्षियों की चहचहाट से उसकी आँख जल्दी खुल गई थी तभी उसने देखा दो किसान लड़ते आ रहे थे। दोनों के कंधों पर फावड़े थे। वो सीधे सुमेर सिंह के पास आए- 'दादा। देखो कुफरे ने मेरा पानी काट लिया इसने ये भी न सोचा कि मेरी फ़सल सूखने के कगार पर है।' उनमें से एक ने चिल्लाकर कहा।
सुमेर सिंह ने कहा- 'दोनों बैठो, बताओ क्या बात है?
दोनों एक साथ बोलने लगे- 'चुप एकदम चुप! हाँ, अब समझाओं क्या हुआ?'
'हाँ, पहले तू बोल क्या हुआ?'
'दादा मुझे पिछली बार भी जब नहर आई थी पानी नहीं मिला गन्ना सूखने लगा है।' एक ने बताया।
'हाँ अब तू बोल कुफरे पानी क्यों काटा? ये तेरा पड़ौसी है ये तो सोच।'' 
''हूँ, मैं ही सोचूँ ये ना सोचे दादा! नहर की सफ़ाई के लिए मैंने इससे दो बार कहा और सब जाते है इससे पूछो ये गया क्या दादा तुमने भी तो अपना बटाईदार भेज दिया था...ये ...ये हर बार टाल जाता है अब कहता है पानी क्यूं काटा। दादा तुमने ही तो कोशिश करके ये छोटा सा रजवाहा बड़ी नहर से निकलवाया था। सफ़ाई तो हमें ही करनी पड़ेगी तभी तो अच्छा पानी मिलेगा।' 
'अब रतिया तू बोल क्या कहना है तुझे?'
'मैं ...मैं दादा तब रिस्तेदार की सादी में गया था।'
'सादी में गया था तो एक मज़दूर रख कर जाता। हाँ, कुफरे ग़लती तो इसकी है पर तू सोच अगर गन्ना सूख गया तो बच्चों को कैसे पढाएगा और गेहूँ नहीं हुए तो खाएगा क्या...और जरिया आमदनी तो है नहीं। चल रतिया तीन बार की मज़दूरी जमाकर और काट ले पानी।'
दादा का यह फ़ैसला तेजस को अच्छा लगा तो वह भी बोला- 'दादा मेरी एक राय है पानी घंटो में बांट देंगे एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक अपने घंटों में पानी आने से पहले किसान नहर की सफ़ाई भी करेगा।'  ज़ोर-ज़ोर से बोलने पर तेजस को खांसी आ गयी थी।
'तू चिल्ला क्यूं रहा है बच्चे, मैं सुन रहा हूँ।' जैसे ही सुमेर सिंह ने कहा उसकी हंसी छूट गई थी पानी पीने अंदर चला गया।
'...देखा बेटा! ये बुढऊ अपने आप को बहरा मानने को तैयार नहीं। बेटे ये घंटों का मामला क्या है ...?' दादी ने पूछा।
'दादी तुम भी कल पंचायत में रहनाकृ...।' उसने शायद पहली बार दादी कहा था...सुनकर उसकी हिड़की बँध गई। 
'दादी क्या हुआ...क्या हुआ?' तेजस ने बुढ़िया को बाहों में भींच लिया।
'कृ...अरे तुम हो ही दादी नहीं तो और क्या कहूंगा।' एक आँसू उसकी आँख से निकल कर पलकों पर ठहर गया था। उसने हिम्मत करके पूछा था- 'दादी आपके कोई संतान नहीं हुई थी क्या?'
बूढ़ी ने लंबी सांस ली, धम्म से बैठ गई थी। आँखें एक बार फिर गंगा-जमुना बन चुकी थीं- 'बेटे तेरे जैसा ही मेरा एक सुंदर बेटा थाकृ...तब ये घर नहीं बना था बाहर की झोपड़ी की तरह से दो झोपड़ी और थीं जिनमें उसकी किलकारी गूंजी। थोड़ा बड़ा हुआ उसका दाख़ला एक अंग्रेजी स्कूल में करा दिया। हर क्लास में पहला नंबर लाता था। अब पढ़लिखकर वो विदेश चला गया...उसे पढ़ाने में इन्होंने कड़ी मेहनत की, दिन में खेती रात में मिल की नौकरी। बेटे ने वहीं अंग्रेजन से सादी कर ली पहले तो वो पैसा भेजता गयाकृ...ये घर बन गया फिर ये ही कोई पंद्रह एक साल की बात होगी वो हमें लेने आया बोला यहाँ क्या रखा है तुम दोनों विदेश चलो वहाँ पर सब बूढ़े एक साथ रहते हैं, सभी सुविधाओं के साथ, बूढ़ों का आसरम ...।' बुढ़िया ने गीली हो चुकी आँखें धोती के किनारे से पौंछी। फिर बोली- 'अब तू ही बता क्या ये ठीक था इन्होंने उसे बहुत बुरा-भला कहा जा चला जा हम समझ लेंगे हमारे कोई पैदा ही नहीं हुआ। वो दिन और आज का दिन, न उसकी कोई ख़बर मिली और न ही हमने जानना चाहा।' दोनों की आँखे भावुक हो चली थीं। 
अगले दिन गाँव में सभी किसानों को उनके घंटों को बता दिया गया सबको लिखकर देने के अलावा एक कापी तेजस ने अपने पास भी रखी। बूढ़े और बूढ़ी की आँखों में उसके लिए प्यार ही प्यार था। किसान का जनम ही समस्याओं से जूझने के लिए हुआ है। गन्ना पैदा करने के बाद उसको बेचना भी एक समस्या। समाधान भी उसके लिए एक दुर्गम रास्ता है। गाँव के पास मिल तो थी परंतु पर्चियों का बंटवारा सही नहीं था। किसान ही एक दूसरे का गला काट रहे थे बड़े किसानों की पर्चियाँ आती थीं छोटे किसान तरसते थे। तेजस ने कई पढे़ लिखे लड़कों को साथ लेकर इसका समाधान गन्ना अधिकारी, एस.डी.एम आदि अधिकारियों से मिलकर कराया। 
क्रेशरों की घटतौली पर किसानों ने हल्ला बोलकर काँटें ठीक कराए। एक सुखद बदलाव नज़र आने लगा। गन्ने के साथ छोटे किसानों में सब्ज़ी की खेती के बारे में गोष्ठियाँ कराई कृषी वैज्ञानिकों ने गन्ने, सब्ज़ियों में दवाई लगाने के बारे में बताया। कई किसानों के पास एक-एक बैल था बिमारी से जोड़ी टूट गयी थी। तेजस ने किसानों से बताया कि मिलकर काम करो।कृरतिया, कूफरे में बोलचाल कम थी उसने सुलह कराकर बैलो का डंगबारा कराया एक बैल कफूरे का और एक बैल रतिया का, लो हो गया डंगवारा। 
एक दिन उसने मज़ाक की टोन में दादी से पूछ लिया- 'दादी तुम वैसे तो हो ही कुल्फ़ी पर दादा जी दुद्दा ;दूधद्ध कैसे हो गए। क्या जवानी में भी ऐसे ही चिड़चिड़े थे?'
दादी का चेहरा दुल्हिन की तरह सुर्ख हो गया था- 'बेटा काफ़ी पीछे जाना पड़ेगा, मैं कोई सात या आठ साल की हूँगी, ये कुछ और बड़े थे। बरसाती छड़ियों का मेला लगा था। ये इस गाँव से और मैं दूसरे गाँव से मेला देखने आई थी, मेले में मैं कुल्फ़ी खा रही थी ये दौड़ते हुए आए बोले कुल्फ़ी को कुल्फ़ी खिला रहे हो ये कैसे?' कहकर दादी कुछ शरमाकर पुनः बोली- 'इनके कहने के अंदाज़ पर मैं सरमा गई थी वो क्या था मैं नहीं जानती थी। मैंने बनावटी ग़्ाुस्से से कहा था कुल्फ़ी दूध से बनती है मुझसे नहीं। और हाँ अगर मैं कुल्फ़ी तो तुम दुद्दा (दूध) क्यूं? ये भी इत्तेफाक था कि हमारी शादी हो गई। इन्होंने मेरा घूंघट उठाकर पहला सबद कुल्फ़ी बोला था।'
तेजस को प्यार से देखते हुए दादी उठ गई थी- 'और हाँ बेटे ये तब तेरे जैसे ही दिखते थे।'
तेजस दूर तक भीग गया था। समय कब बीत गया उसे पता भी न चला। एक दिन वो भी आया जब चै. सुमेर सिंह का देहावसान हो गया। बुढ़िया पहले तो रोई फिर तेजस को अंतिम संस्कार की तैयारी करते देख उसे लगा कि जैसे उसका सगा बेटा सारे काम को अंजाम दे रहा हो।
बूढ़े को चारपाई से उतार कर कुशासन पर लिटा दिया गया। बूढ़ी चेहरे पर पल्लू ढके आई उसने कफ़न उघाड़ कर बूढ़े का चेहरा देखा। चेहरे पर पूर्ण शांती थी। फिर अचानक उसने बूढ़े के गोड्डे पर पाँच बार ठक-ठक की। मुहँ से हल्की बेबस सी आवाज़ आई -मैं आ रही हूँ, अकले क्यों जा रहे हो? 
तेजस ने यह आवाज़ सुनी तो वह बुढ़िया की तरफ़ दौड़ा। उसने चकराकर गिरती हुई बुढ़िया को अपनी बाहों में संभाल लिया। वह कुछ कह पाता उससे पहले ही वह निढाल हो चुकी थी।
घाट पर तीन चिताएँ धूू-धू कर जल रही थीं। तेजस तीनों को मुखाग्नि देकर दूर बैठा अश्रुपूर्ण आँखों से उन्हें निहार रहा था। दो चिताएँ तो सभी देख रहे थे मगर तीसरी चिता को तेजस ही देख पा रहा था।


लग रहा था कि कुल्‍फी पुन:  दूध बन जाने के लिए भाप बनकर उड रही है।


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