डाॅ. रजनी शर्मा
पीने का पानी उच्च गुणवत्ता वाला होना चाहिए क्योंकि बहुत सारी बीमारियां पीने के पानी के कारण ही घेर लेती हैं। विकासशील देशों में जलजनित रोगों को कम करना सार्वजनिक स्वास्थ्य का प्रमुख लक्ष्य है। सामान्य पानी आपूर्ति नल से ही उपलब्ध होती है। यही पीने, कपड़े धोने या जमीन की सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है। अच्छे स्वास्थ्य की सुरक्षा और उसे बनाए रखने के लिए पेयजल और स्वच्छता-सुविधाएँ, मूल आवश्यकताएँ हैं। विभिन्न अंतरारष्ट्रीय मंचों से समय-समय पर इस पर विचार-विमर्श हुआ है।
जल ही जीवन है। जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। पानी के महत्त्व का वर्णन वेदों और दूसरी अन्य रचनाओं में भी मिलता है। जल न हो तो हमारे जीवन का आधार ही समाप्त हो जाए। दैनिक जीवन के कार्य बिना जल के संभव नहीं हैं। धीरे-धीरे जल की कमी होने के साथ जो जल उपलब्ध है वह प्रदूषित है। जिसके प्रयोग से लोग गंभीर बीमारियों से परेशान हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है। दुनियाभर में लगभग एक अरब लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं। 'ग्लोबल एनवायरमेंट आउट लुक' रिपोर्ट बताती है कि एक तिहाई जनसंख्या पानी कि कमी की समस्या का सामना कर रही है। सन 2032 तक विश्व की लगभग आधी जनसंख्या पानी की भीषण कमी से पीड़ित हो जाएगी। शहर और ग्राम दोनों ही पेयजल संकट से ग्रस्त हैं। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर विद्यमान पेयजल संकट के प्रमुख कारण हैं- अनियमित वर्षा। उचित उपयोग न होना। जमीन से अधिक पानी निकालना। तेजी से बढ़ता जल प्रदूषण।
जल की समस्या से निपटने के लिए प्रयास करने ही होंगे। वर्षा की बूंदों को सहेजना होगा तथा जल का उपयोग उचित प्रकार से करना होगा। इसके लिए जनप्रतिनिधियों विशेषकर ग्राम पंचायतों के पंच तथा सरपंचों को जिम्मेदारी के साथ आंदोलन कर रूप में जल संरक्षण के इस पावन कार्य को आगे बढ़ाना होगा। राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम से प्रेरणा लेकर हमें ग्रामीण अंचलों में जल संरक्षण एवं संवर्धन हेतु जन भागीदार पर आधारित नए कार्यक्रम की शृंखला शुरू करनी होगी। हैंडपंप, ट्यूबवेल एवं कुओं तथा तालाबों का पुनर्भरण करना होगा। खेत में तालाब बनाकर उसका संरक्षण तथा वर्षा जल को रोकना होगा। खेत का पानी खेत में और गाँव का पानी गाँव में' सिद्धांत को चरितार्थ करना होगा। राजस्थान जैसे सूखा क्षेत्रों में किए गए प्रयासों को आदर्श मानकर कार्य करना होगा। देश के लगभग सभी ग्रामीण क्षेत्रों में महात्मा गाँधी ग्रामीण रोजगार योजना संचालित है। इस कार्यक्रम के तहत व्यक्ति जहाँ रहता है, वहीं उसके आस-पास उसे रोजगार उपलब्ध कराने कि कोशिश की जाती है, ताकि गरीब लोग रोजगार हेतु पलायन करने को मजबूर न हों। इस योजना में राष्ट्रीय पेयजल कार्यक्रम का समन्वय स्थापित कर तालाबों, स्टापडैम आदि के लिए काम लेकर जल संचयन किया जा सकता है।
किसानों को फसल काटने के बाद खेत में आग नहीं लगानी चाहिए ताकि खेत के जैव-पदार्थ जिनसे खेत में जल संवर्धन होता है वह न जल पाएं और खेत की नमी खत्म न हो सके। खेत में पानी का ठहराव जितना अधिक होगा जल का जमीन में रिसाव भी उतना ही अधिक होगा। खेत में पानी का रिसाव अधिक हो, इसके लिए छोटे-छोटे तालाब बनाए जाने चाहिए। जो कुएं सूख गए हैं, उनकी गाद एवं गंदगी साफ कर उन्हें पुनर्जीवित किया जाना चाहिए। नवनिर्मित घरों के आस-पास तथा कुओं और हैंडपंपों के पास सोखता गड्ढों को भरने के लिए सुरक्षित दूरी पर जल संचय के गड्ढे बनाए जाने चाहिए। ये गड्ढे एक से दो मीटर चैड़े तथा दो से तीन मीटर गहरे बनाए जाते हैं। गड्ढा खोदने के बाद उसे कंकड़, रोड़ी, ईट के टुकड़े और बजरी से भरा जाता है। वर्षा जल संरक्षण के समय यह सावधानी बरती जानी चाहिए कि संरक्षित किया जाने वाला पानी किसी रसायन या जहरीली चीजों के संपर्क में न आए।
जल संरक्षण की प्रचलित विधि मकान छतों से गिरने वाले वर्षा जल का संग्रहण भी है। इसमें छत से गिरने वाले वर्षा जल को विशेष रूप से बनाए गए जलाशयों में जमा किया जाता है। बाद में इस पानी को साफ कर इसका उपयोग किया जा सकता है। वर्षा जल जैव दृष्टि से शुद्ध होता है इसलिए वर्षा के जल का संरक्षण पीने के लिए भी उपयोग हो सकता है। बरसात के पानी बहाव के रास्ते में बाधा डाल उसकी गति को कम किया जाना चाहिए। ताकि पानी बहाव जमीन के अंदर गड्ढों के माध्यम से जमीन के अंदर जा सके। खुली जगहों पर घास आदि बो देनी चाहिए ताकि उसकी जड़ें जमीन के कटाव को रोक सकें और पानी को जमीन के अंदर जाने में मदद कर सकें।
किसान गर्मी में खेत की जुताई करे तो उसे ढेलेदार अवस्था में रहने दे। बरसात में उथली और गहरी जड़ वाली फसलें बोए। कम वर्षा वाले स्थानों पर खेत में मेड के स्थान पर नाली बनाए। अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में खेत के चारों ओर मेड़ बनाना। घर में पानी का उपयोग करते समय भी निम्नलिखित अन्य सावधनियां भी बरती जानी चाहिए - पेयजल को हमेशा ढककर जमीन से ऊँचे स्थान पर रखना। जल स्रोतों के आस-पास हमेशा स्वच्छता बनाए रखना। पेयजल को हमेशा लंबी डंडी वाले बर्तन से निकालना। स्त्रोत के आस-पास गंदा पानी एकत्र नहीं होने देना एवं मल-मूत्र का विसर्जन कतई नहीं करना। कुआँ-तालाब आदि का पानी साफ रहे, इसके लिए आवश्यक है कि उसमें कचरा तथा पूजा सामग्री न डाली जाए तथा संभव हो तो नहाने और कपड़े धोने आदि का काम भी न किया जाए। यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि शौचालय का निर्माण जल स्रोत से कम से कम 15 फीट की दूरी पर हो। रिपोर्ट आ रही है कि 2050 तक भारत में पानी की बेहद कमी हो जाएगी। ऐसा अनुमान है कि आने वाले दिनों में औसत वार्षिक पानी की उपलब्धता काफी कम होने वाली है। ऐसे में यदि समय रहते नहीं चेते तो निश्चित रूप से एक दिन वह भी आएगा जब पानी के बिना जीवन सूना हो जाएगा।
संदर्भ
1. विश्व स्वास्थ्य संगठन. स्वच्छता और जल आपूर्ति पर कार्रवाई के लिए ग्लोबल फ्रेमवर्क (2009-07-21). फ्रिक्वेंटली आस्क्ड क्वेश्चंस 'वर्किंग डोक्यूमेंट'
2. जल की गुणवत्ता: शुचिता के व्यवहार का प्रभाव, ए.के.सेनगुप्ता, सुलभ इंडिया दिसम्बर 2012
3. भारत में पानी की आपूर्ति और मलजल कैसे उपलब्ध है?
4. गाइडलाइन, 2010, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, राजीव गाँधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली
5. साक्षर भारत डाक्यूमेंट, 2009, राष्ट्रीय साक्षरता मिशन, भारत सरकार, नई दिल्ली
6- http://hi.vikaspedia.in/rural&energy/best&practices
7- https://m.dailyhunt.in/news/india/hindi