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Showing posts from February 15, 2020

बाबा नागार्जुन को पढ़ते हुए

इन्द्रदेव भारती भिखुआ उजरत लेके आया, बहुत दिनों के बाद झोपड़िया ने दिया जलाया, बहुत दिनों के बाद खाली डिब्बे और कनस्तर फूले नहीं समाये नून, मिरच, घी, आटा आया, बहुत दिनों के बाद हरिया हरी मिरच ले आया, धनिया, धनिया लाई सिल ने बट्टे से पिसवाया, बहुत दिनों के बाद चकला, बेलन, तवा, चीमटा खड़के बहुत दिनों में चूल्हा चन्दरो ने सुलगाया, बहुत दिनों के बाद फूल के कुप्पा हो गयी रोटी, दाल खुशी से उबली भात ने चौके को महकाया, बहुत दिनों के बाद काली कुतिया कूँ-कूँ करके आ बैठी है दुआरे छक कर फ़ाक़ो ने फिर खाया, बहुत दिनों के बाद दिन में होली, रात दीवाली, निर्धनिया की भैया घर-भर ने त्योहार मनाया, बहुत दिनों के बाद ए-3, आदर्श नगर, नजीबाबाद-246763 (बिजनौर) उप्र

एक बेबाक शख्सियत : इस्मत चुगताई

आरती कुमारी पीएच. डी. हिंदी विभाग, त्रिपुरा विश्वविद्यालय, त्रिपुरा, अगरतला            साहित्य के क्षेत्र में अनेक विद्वानों का योगदान रहा हैं, वर्तमान  में विभिन्न विषयों से जुड़े, एक नई दृष्टि लिए रचनाकार हमारे समक्ष आ चुके हैं ।  भारतीय साहित्य में इस्मत चुगताई का भी एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है, जिनका जन्म 21 अगस्त 1915 ई .  को बदायूं उत्तरप्रदेश में हुआ था। जिनका पूरा जीवन संघर्षशील तथा समस्याओं से घिरा रहा परंतु कभी  भी जिंदगी से हार नहीं मानती,जितना अनुभव जीवन में मिल पाया उसे जीवन के अंत समय तक कभी भूल नहीं पाई ।  इस्मत चुगताई उर्दू की प्रमुख व प्रसिद्ध लेखिका के रूप में जानी जाती रही हैं , उनकी प्रत्येक रचना विभिन्न भाषाओं में अनुवादित हो चुकी हैं ।  वह एक स्वतंत्र विचारक , निडर , बेखौफ, जिद्दी , जवाबदेही, तार्किक तथा विरोधी स्वभाव की थी जिन्होंने अपने जीवन में उन सभी बातों का विरोध किया जिससे जिंदगी एक जगह थम सी जा रही हो ।  इस्मत चुगताई का परिवार एक पितृसत्तात्मक विचारों वाला था उसके बावजूद ...