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भीमराव आम्बेडकर

भीमराव रामजी आम्बेडकर[a] (14 अप्रैल, 1891 – 6 दिसंबर, 1956), डॉ॰ बाबासाहब आम्बेडकर नाम से लोकप्रिय, भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे।[1] उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया था।[2] वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री, भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माता थे।[3][4][5][6] आम्बेडकर विपुल प्रतिभा के छात्र थे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त कीं तथा विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में शोध कार्य भी किये थे।[7] व्यावसायिक जीवन के आरम्भिक भाग में ये अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे एवं वकालत भी की तथा बाद का जीवन राजनीतिक गतिविधियों में अधिक बीता। तब आम्बेडकर भारत की स्वतन्त्रता के लिए प्रचार और चर्चाओं में शामिल हो गए और पत्रिकाओं को प्रकाशित करने, राजनीतिक अधिकारों की वकालत करने और दलितों के लिए सामाजि

द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ,10 -11 फरवरी 2020

अकादमिक हिन्दी : स्थिति और संभावनाएँ   मित्रों,  स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय, नागपुर 10 - 11 फरवरी को द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन करने जा रहा है। इस बार का विषय अकादमिक हिन्दी की स्थिति और संभावनाओं पर केंद्रित है। हिन्दी में अनुसंधान, रोजगार और हिन्दी शिक्षण की संभावित चुनौतियों पर व्यापक अकादमिक संवाद ही संगोष्ठी का उद्देश्य है।  सहभागी होने वाले साथियों से निम्नलिखित पक्षों पर चिंतन की अपेक्षा है -   * हिन्दी अनुसंधान : स्थिति और गति  * शोध लेखन : नई दिशाएँ- नई चुनौतियाँ * हिन्दी शिक्षण - नए आयाम की जरूरत  * हिन्दी में रोजगार के क्षेत्र    आपसे आग्रह है कि उपरोक्त में से किसी भी विषय पर अपना शोधपत्र 15 जनवरी, 2020 तक दिए गए पते पर मेल कर सहयोग प्रदान करें :- mkprtmnu@gmail.com  विषयोपयुक्त शोधपत्रों को संकलित कर पुस्तक प्रकाशित की जाएगी,जिसका विमोचन संगोष्ठी में प्रस्तावित है । अतः यथासमय अपना शोधपत्र भेजने का कष्ट करें।   कार्यक्रम का विस्तृत विवरण जल्दी  ही प्रेषित  किया जाएगा ।   संयोजक डाॅ मनोज पाण्डेय  9595239781

21वीं सदी के कथा साहित्य में किन्नरों के प्रति समाज का वर्तमान दृष्टिकोण 

रिंकी कुमारी  पीएचडी शोधार्थी                 हिंदी विभाग, त्रिपुरा विश्वविद्यालय इस जगत में वंशाकुल की वृद्धि के लिए प्रकृति ने स्त्री-पुरुष का निर्माण किया है, समाज में इसे दो लिंगी नाम से पहचान मिली है। परंतु समाज में एक और वर्ग उपस्थित है, जिसमें शारीरिक रूप से लैंगिक विकलांग हैं जिन्हें किन्नर, हिजड़ा, तृतीयलिंग, उभयलिंगी आदि के नामों से पहचानी जाती है। इस वर्ग को हमेशा से ही समाज द्वारा उपेक्षित किया जाता है रहा है। 'हिजड़ा' शब्द हमारे समाज का सबसे अभिशापित शब्द माना जाता रहा है, लेकिन यही शब्द किसी व्यक्ति विशेष या समुदाय विशेष के लिए संबोधन किया जाता है। मानवता की भावना से विचार किया जाए तो उन के दिलो-दिमाग़ में अपने प्रति क्या विचार आते होंगे? उनकी अंतरात्मा अपने आप से क्या कहती होगी? यह प्रश्न उस समाज से है जो इस जगत में शराफत का चोला ओढ़े हुए है। क्यों इन्हें इस समाज से वाहिष्कृत कर उनकी दुनिया अलग मान बैठे हैं। समाज क्यों यह भूल जाता है कि ये लोग किसी दूसरे ग्रह से नहीं आए हैं बल्कि हमारे ही समाज के एक अंग हैं, वे देखने में भी एलिएन नहीं लगते, उनकी शारीरिक बनावट भी हमार

शोध विशेषांक के संभावित विषय

शोधादर्श  'शोधादर्श' पत्रिका के आगामी आयोजन 'शोध विशेषांक' के लिए लेखकों से निवेदन है कि वह निम्‍न विषयों पर अपने लेख भेज सकते हैं- - शोध प्रारूप का अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं महत्व - शोध प्रारूप की परिभाषा  - शोध प्रारुप के उद्देश्य - शोध प्रारूप के घटक अंग  - सूचना के स्रोत  - अध्ययन की प्रकृति - शोध अध्ययन का उद्देश्य  – सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थिति  - सामाजिक-कालिक सन्दर्भ  - अध्ययन के आयाम और निदर्शन कार्यविधि  - तथ्य संकलन के लिए प्रयुक्त तकनीक   - शोध प्रारूप का महत्व - शोध प्रारूप बनाम तथ्य संकलन की पद्धति  - शोध प्रारुप के प्रकार - विवरणात्मक या वर्णनात्मक शोध प्रारूप  - व्याख्यात्मक शोध प्रारूप  - अन्वेषणात्मक शोध प्रारूप  - प्रयोगात्मक शोध प्रारुप  - अनुसंधान प्रक्रिया - अनुसंधान और जीवन  - अनुसंधान के सौपान - अनुसंधान के नैतिक पक्ष  - अनुसंधान समस्या का चयन - अनुसंधान प्रस्ताव - अनुसंधान परिकल्पना और उसका परीक्षण - शोध हेतु साहित्य अवलोकन - प्रतिचयन प्रविधियाँ  - ऐतिहासिक अनुसंधान - वर्णात्मक अनुसंधान - प्रयोगात्मक अनुसंधान - क्रियात्मक अनुसंधान - व्यैक्तिक अ

नाखून क्यों बढ़ते हैं?

हजारी प्रसाद द्विवेदी   बच्‍चे कभी-कभी चक्‍कर में डाल देनेवाले प्रश्‍न कर बैठते हैं। अल्‍पज्ञ पिता बड़ा दयनीय जीव होता है। मेरी छोटी लड़की ने जब उस दिन पूछ दिया कि आदमी के नाखून क्‍यों बढ़ते हैं, तो मैं कुछ सोच ही नहीं सका। हर तीसरे दिन नाखून बढ़ जाते हैं, बच्‍चे कुछ दिन तक अगर उन्‍हें बढ़ने दें, तो माँ-बाप अक्‍सर उन्‍हें डॉटा करते है। पर कोई नहीं जानता कि ये अभागे नाखून क्‍यों इस प्रकार बढ़ा करते है। काट दीजिए, वे चुपचाप दंड स्‍वीकार कर लेंगे, पर निर्लज्‍ज अपराधी की भाँति फिर छूटते ही सेंध पर हाजिर। आखिर ये इतने बेहया क्‍यों हैं? कुछ लाख ही वर्षों की बात है, जब मनुष्‍य जंगली था, वनमानुष जैसा। उसे नाखून की जरूरत थी। उसकी जीवन रक्षा के लिए नाखून बहुत जरूरी थे। असल में वही उसके अस्‍त्र थे। दाँत भी थे, पर नाखून के बाद ही उनका स्‍थान था। उन दिनों उसे जूझना पड़ता था, प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ना पड़ता था। नाखून उसके लिए आवश्‍यक अंग था। फिर धीरे-धीरे वह अपने अंग से बाहर की वस्‍तुओं का सहारा लेने लगा। पत्‍थर के ढेले और पेड़ की डालें काम में लाने लगा (रामचंद्रजी की वानरी सेना के पास ऐसे ही अस्‍

अनुपमा का प्रेम

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय   ग्यारह वर्ष की आयु से ही अनुपमा उपन्यास पढ़-पढ़कर मष्तिष्क को एकदम बिगाड़ बैठी थी। वह समझती थी, मनुष्य के हृदय में जितना प्रेम, जितनी माधुरी, जितनी शोभा, जितना सौंदर्य, जितनी तृष्णा है, सब छान-बीनकर, साफ कर उसने अपने मष्तिष्क के भीतर जमा कर रखी है। मनुष्य- स्वभाव, मनुष्य-चरित्र, उसका नख दर्पण हो गया है। संसार में उसके लिए सीखने योग्य वस्तु और कोई नही है, सबकुछ जान चुकी है, सब कुछ सीख चुकी है। सतीत्व की ज्योति को वह जिस प्रकार देख सकती है, प्रणय की महिमा को वह जिस प्रकार समझ सकती है,संसार में और भी कोई उस जैसा समझदार नहीं है, अनुपमा इस बात पर किसी तरह भी विश्वाश नही कर पाती। अनु ने सोचा- वह एक माधवीलता है, जिसमें मंजरियां आ रही हैं, इस अवस्था में किसी शाखा की सहायता लिये बिना उसकी मंजरियां किसी भी तरह प्रफ्फुलित होकर विकसित नही हो सकतीं। इसलिए ढूँढ-खोजकर एक नवीन व्यक्ति को सहयोगी की तरह उसने मनोनीत कर लिया एवं दो-चार दिन में ही उसे मन प्राण, जीवन, यौवन सब कुछ दे डाला। मन-ही-मन देने अथवा लेने का सबको समान अधिकार है, परन्तु ग्रहण करने से पूर्व सहयोगी को भी (बताने क