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अमनिका


पाँच पंक्तियों की कविता, जिसमें एक ही बात को चार तरीके से कहने का प्रयास किया गया है। खास बात ये है कि पाँच पंक्तियों में ऊपर-नीचे से कोई भी दो पंक्ति लेने पर बात पूरी हो जाती है। आशा है सुधि पाठक और समीक्षक अमनिका को नयी विधा के रूप में स्वीकार करेंगे। 


1
मैं एक चराग़ की तरह जलने में रह गया
मौसम की तरह रोज़ बदलने में रह गया
हर हमसफ़र ने राह में धोका दिया मुझे
मंजिल न आई और मैं चलने में रह गया
सूरज की तरह रोज़ निकलने में रह गया



2
गीत गाने को जी चाहता है
प्रीत पाने को जी चाहता है
झील सी गहरी आँख तेरी
पास आने को जी चाहता है
डूब जाने को जी चाहता है



3
मैं आंसू तुम्हारे छलकने न दूंगा
हवा से चिराग़ों को बुझने न दूंगा
मेरी ज़िंदगी एक बहता है दरिया
मैं दरिया को हरगिज़ भी रुकने न दूंगा
क़दम अपने पी कर बहकने न दूंगा



4
देख मेरी आँखों में क्या है
सुन मेरी सांसों में क्या है
दिल से दिल की बातें मत कर
दिल, दिल की बातों में क्या है
दिन में क्या रातों में क्या है



5
खुशबुओं की तरह मैं बिखर जाऊंगा
एक जगह रुक गया तो मैं मर जाऊंगा
दुनिया वाले मुझे कुछ भी समझा करें
मैं तो दुश्मन के भी अपने घर जाऊंगा
कोई आवाज़ देगा ठहर जाऊंगा



6
हंस हंस के मेरा बच्चा परछाई देखता है
छू - छू के उंगलियों से तनहाई देखता है
मशहूर हो गया है जब से जवान होकर
हर शह्र - शह्र मेरी रूसवाई देखता है
ऐसे के जैसे कोई हरजाई देखता है



7
अपने जो खास हैं वो हमसे हसद रखते हैं
नफ़रतें और अदावत की रसद रखते हैं
हमने देखा है परेशां हैं यहाँ पर वो लोग
आसमां चाहते हैं बौनों का क़द रखते हैं
काम कुछ करते नहीं झूठी सनद रखते हैं



8
बात झूंठी बनाने लगे हैं
ऊँची बोली लगाने लगे हैं
मेहरबानी पे जो थे हमारी
हमसे आँखे मिलाने लगे हैं
वो हंसी भी उड़ाने लगे हैं



9
क्या है दुनिया ये देख लेने दो
थोड़ा मुझको भी खेल लेने दो
रात बेचैनीयों में बीती है
एक झलक अपनी देख लेने दो
अपनी बाहों में घेर लेने दो



10
देवताओं की बात करते हैं
देश- जनता से घात करते हैं
पाँच सालों में आँख खुलती है
साफ वोटों पे हाथ करते हैं
रात दिन जात-पात करते हैं



11
मुझे घर बैठे शोहरत दे रही थी
हवा थी गर्म लज्ज़त दे रही थी
मेरे माथे पे था मेरा पसीना
खुशी मेरी ही मेहनत दे रही थी


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