Thursday, November 7, 2019

जु़ल्फें बिखर गईं तेरे गालों के आस पास /ग़ज़ल


महेन्द्र अश्क 


जु़ल्फें बिखर गईं तेरे गालों के आस पास 
लहरा रहे हैं साँप उजालों के आस पास


किस किस तरह के जाल बिछाने में लग गई 
दुनिया तुम्हारे चाहने वालों के आस पास 


अब रात की सियाहियों में ध्ूप घुल गई 
अब दिन बिखर गये तेरे बालों के आस पास 



सोने ही नहीं देती इस अहसास की चुभन 
हम भी रहे हैं शोख़ ग़ज़ालों के आस पास 


वो आ रहे हैं जब से किसी ने दी ये ख़बर 
सूरज निकल रहा है ख़यालों के आस पास 


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