डॉ. सुशील कुमार त्यागी 'अमित'
मिली खुशबू चमन महका,
ये कैसी है बहार आयी
मिली खुशबू चमन महका, ये कैसी है बहार आयी।
न मैं समझा, न तुम समझे, कहाँ से ये फुहार आयी।।
हुआ रँगीन ये मौसम, हवा भी गा रही गाना,
जरा आना मेरे दिलवर, मेरे दिल से पुकार आयी।।
खिले मेरे हसीं नग़में, तो ग़ज़लें संग क्यों रोयीं,
यही मैं न समझ पाता, सदा गाती बयार आयी।।
तराना प्यार का छेड़ा, अलापा राग जीवन का,
हुआ पागल खुशी से मैं, तेरे स्वर से गुँजार आयी।
खुला अम्बर खुली धरती, बसी इनमें तेरी यादें,
कभी छुप-छुप कभी खुलकर, मेरे जीवन में हार आयी।
'अमित' नित गीत प्रीति के, सुनाता दुनिया वालों को,
लबों पे खुशबू की थिरकन, हृदय से ये गुहार आयी।।
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