Skip to main content

नंदू


ज्योत्सना भारती


थका हारा नंदू खेत से आकर एक तरफ़ चुपचाप बैठ गया। उसके चेहरे पर चिंता और थकान की झलक स्पष्ट थी। नंदू की पत्नी सीमा उसके सामने पानी का गिलास लिए कब से खड़ी थी। मगर नंदू का ध्यान तो कहीं और ही कुछ सोचने में लगा था। अचानक सीमा को देखकर वो चैंका और बोला-अरे! सीमा तुम कब से खड़ी हो बैठ जाओ न। सीमा चुपचाप बैठ गई। जब बहुत देर तक नंदू कुछ नहीं बोला तो सीमा ने उसके माथे पर हाथ रखा। ये क्या? नंदू तो बुरी तरह से तप रहा था। ये देख कर सीमा घबरा गई और तुरंत ही नंदू को लेकर पड़ोस के डाॅक्टर के पास गई। डाॅक्टर ने नंदू को कुछ दवाएं दीं और इंजेक्शन लगा दिया तथा घर जाकर आराम करने को कहा। घर आकर नंदू को बुखार और तेज़ हो गया था। वो लगातार बड़बड़ाए जा रहा था-'तो क्या हो गया, मैं क्या करूँगा अब, कैसे होगा?' और भी न जाने क्या-क्या बोले जा रहा था। सीमा उसी के पास बैठी थी। 
नंदू शहर में अच्छे पद पर नौकरी करता था मगर वो अपनी लगी लगाई पक्की नौकरी इसलिए छोड़कर गाँव आ गया था कि घर पर अपने पिता के साथ खेती की पैदावार बढ़ाने को और नई तकनीक से खेती करने में उनका हाथ बटाएगा। मगर यहाँ आकर तो उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। कभी बिजली नहीं कभी पानी नहीं, और कभी उन्नत किस्म की खाद और बीज नहीं मिल पाते थे। इन सब परेशानियों से वो हतोत्साहित होता जा रहा था। मगर उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा और लगातार परिश्रम करता रहा। इस सबमें वो क़र्ज़दार भी हो गया। आज प्रातः जब वो खेत पर गया तो देखकर ठगा-सा रह गया। रात को खेत में घुस कर जंगली जानवरों ने उसकी लहलहाती फ़सलों को बुरी तरह से रौंद डाला था, उसने इस फ़सल को उगाने में कड़ी मेहनत की थी। मुँह अंधेरे खेत पर जाता और दोपहर की चिलचिलाती धूप की परवाह किए बिना दिन भर खेतों में काम कराता।  आज वो सिर पकड़ कर धम्म से नीचे बैठ गया। बहुत देर तक ख़ून के आँसू बहाता रहा मगर कुछ भी सोच नहीं पा रहा था। सोचते-सोचते जब थक गया तो घर आ गया और फिर परिणाम सामने था।
इधर बच्चे भी शहर वापिस जाने की जिद पकड़े थे। मगर क़र्ज़दार होने के कारण वो छोड़कर जा भी नहीं सकता था। यही सब सोचते-सोचते वो डिप्रेशन में आ रहा था। जिससे वो बीमार रहने लगा।
एक दिन वो खाना-खाने बैठा ही था कि दरवाज़े के ज़ोर-ज़ोर से पीटने की आवाजें आईं। सीमा ने दरवाज़ा खोला तो सामने ग़्ाुस्से से लाल हुआ महाजन अपने लठैतों के साथ खड़ा था। उसके तीखे तेवर देखकर सीमा एक क़दम पीछे हट गई। तभी वो चीख़ कर बोला-''कहाँ है नंदू का बच्चा, मेरे पैसे हजम करे बैठा है। आज तो मैं अपने दो लाख रुपए ब्याज़ सहित लेकर ही जाऊँगा। तेज आवाज़ें और महाजन की बातें सुन कर नंदू बहुत घबरा गया। उसने फुर्ती से उठकर स्वयं को कमरे में कैद कर लिया। जब दरवाज़ा बहुत देर तक पीटने पर भी नहीं खुला तो उसको तोड़ना पड़ा। दरवाज़ा टूटते ही सामने का दृश्य देख सीमा चीख़ मारकर बेहोश हो गई और महाजन अपने लठैतों सहित आँखे फाड़े खड़ा जड़वत देखता रह गया। सामने नंदू पंखे में बंधी रस्सी से झूल रहा था।


Comments

Popular posts from this blog

अंतर्राष्ट्रीय संचार व्यवस्था और सूचना राजनीति

अवधेश कुमार यादव साभार http://chauthisatta.blogspot.com/2016/01/blog-post_29.html   प्रजातांत्रिक देशों में सत्ता का संचालन संवैधानिक प्रावधानों के तहत होता है। इन्हीं प्रावधानों के अनुरूप नागरिक आचरण करते हैं तथा संचार माध्यम संदेशों का सम्प्रेषण। संचार माध्यमों पर राष्ट्रों की अस्मिता भी निर्भर है, क्योंकि इनमें दो देशों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध को बनाने, बनाये रखने और बिगाड़ने की क्षमता होती है। आधुनिक संचार माध्यम तकनीक आधारित है। इस आधार पर सम्पूर्ण विश्व को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। पहला- उन्नत संचार तकनीक वाले देश, जो सूचना राजनीति के तहत साम्राज्यवाद के विस्तार में लगे हैं, और दूसरा- अल्पविकसित संचार तकनीक वाले देश, जो अपने सीमित संसाधनों के बल पर सूचना राजनीति और साम्राज्यवाद के विरोधी हैं। उपरोक्त विभाजन के आधार पर कहा जा सकता है कि विश्व वर्तमान समय में भी दो गुटों में विभाजित है। यह बात अलग है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के तत्काल बाद का विभाजन राजनीतिक था तथा वर्तमान विभाजन संचार तकनीक पर आधारित है। अंतर्राष्ट्रीय संचार : अंतर्राष्ट्रीय संचार की अवधारणा का सम्बन्ध

मणिपुरी कविता: कवयित्रियों की भूमिका

प्रो. देवराज  आधुनिक युग पूर्व मणिपुरी कविता मूलतः धर्म और रहस्यवाद केन्द्रित थी। संपूर्ण प्राचीन और मध्य काल में कवयित्री के रूप में केवल बिंबावती मंजुरी का नामोल्लख किया जा सकता है। उसके विषय में भी यह कहना विवादग्रस्त हो सकता है कि वह वास्तव में कवयित्री कहे जाने लायक है या नहीं ? कारण यह है कि बिंबावती मंजुरी के नाम से कुछ पद मिलते हैं, जिनमें कृष्ण-भक्ति विद्यमान है। इस तत्व को देख कर कुछ लोगों ने उसे 'मणिपुर की मीरा' कहना चाहा है। फिर भी आज तक यह सिद्ध नहीं हो सका है कि उपलब्ध पद बिंबावती मंजुरी के ही हैं। संदेह इसलिए भी है कि स्वयं उसके पिता, तत्कालीन शासक राजर्षि भाग्यचंद्र के नाम से जो कृष्ण भक्ति के पद मिलते हैं उनके विषय में कहा जाता है कि वे किसी अन्य कवि के हैं, जिसने राजभक्ति के आवेश में उन्हें भाग्यचंद्र के नाम कर दिया था। भविष्य में इतिहास लेखकों की खोज से कोई निश्चित परिणाम प्राप्त हो सकता है, फिलहाल यही सोच कर संतोष करना होगा कि मध्य-काल में बिंबावती मंजुरी के नाम से जो पद मिलते हैं, उन्हीं से मणिपुरी कविता के विकास में स्त्रियों की भूमिका के संकेत ग्रहण किए ज

निर्मला पुतुल के काव्य में आदिवासी स्त्री

वंदना गुप्ता                                          समकालीन हिंदी कवयित्रियों में श्रीमती निर्मला पुतुल एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आदिवासी जीवन का यथार्थ चित्रण करती उनकी रचनाएँ सुधीजनों में विशेष लोकप्रिय हैं। नारी उत्पीड़न, शोषण, अज्ञानता, अशिक्षा आदि अनेक विषयों पर उनकी लेखनी चली है। गगन गिल जी का कथन है - ''हमारे होने का यही रहस्यमय पक्ष है। जो हम नहीं हैं, उस न होने का अनुभव हमारे भीतर जाने कहाँ से आ जाता है? .... जख्म देखकर हम काँप क्यों उठते हैं? कौन हमें ठिठका देता है?''1 निर्मला जी के काव्य का अनुशीलन करते हुए मैं भी समाज के उसी जख्म और उसकी अनकही पीड़ा के दर्द से व्याकुल हुई। आदिवासी स्त्रियों की पीड़ा और विकास की रोशनी से सर्वथा अनभिज्ञ, उनके कठोर जीवन की त्रासदी से आहत हुई, ठिठकी और सोचने पर विवश हुई।  समाज द्वारा बनाए गए कारागारों से मुक्त होने तथा समाज में अपनी अस्मिता और अधिकारों के लिए नारी सदैव संघर्षरत रही है। सामाजिक दायित्वों का असह्य भार, अपेक्षाओं का विशाल पर्वत और अभिव्यक्ति का घोर अकाल  नारी की विडंबना बनकर रह गया है। निर्मला जी ने नारी के इसी संघर्ष