वृंदावनलाल वर्मा
सूरज के घोड़े इठलाते तो देखो नभ में आते हैंटापों की खटकार सुनाकर तम को मार भगाते हैंकमल-कटोरों से जल पीकर अपनी प्यास बुझाते हैंसूरज के घोड़े इठलाते तो देखो नभ में आते हैं।
अर्चना राज़ तुम अर्चना ही हो न ? ये सवाल कोई मुझसे पूछ रहा था जब मै अपने ही शहर में कपडो की एक दूकान में कपडे ले रही थी , मै चौंक उठी थी ...
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