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मणिपुरी कविता: कवयित्रियों की भूमिका

प्रो. देवराज  आधुनिक युग पूर्व मणिपुरी कविता मूलतः धर्म और रहस्यवाद केन्द्रित थी। संपूर्ण प्राचीन और मध्य काल में कवयित्री के रूप में केवल बिंबावती मंजुरी का नामोल्लख किया जा सकता है। उसके विषय में भी यह कहना विवादग्रस्त हो सकता है कि वह वास्तव में कवयित्री कहे जाने लायक है या नहीं ? कारण यह है कि बिंबावती मंजुरी के नाम से कुछ पद मिलते हैं, जिनमें कृष्ण-भक्ति विद्यमान है। इस तत्व को देख कर कुछ लोगों ने उसे 'मणिपुर की मीरा' कहना चाहा है। फिर भी आज तक यह सिद्ध नहीं हो सका है कि उपलब्ध पद बिंबावती मंजुरी के ही हैं। संदेह इसलिए भी है कि स्वयं उसके पिता, तत्कालीन शासक राजर्षि भाग्यचंद्र के नाम से जो कृष्ण भक्ति के पद मिलते हैं उनके विषय में कहा जाता है कि वे किसी अन्य कवि के हैं, जिसने राजभक्ति के आवेश में उन्हें भाग्यचंद्र के नाम कर दिया था। भविष्य में इतिहास लेखकों की खोज से कोई निश्चित परिणाम प्राप्त हो सकता है, फिलहाल यही सोच कर संतोष करना होगा कि मध्य-काल में बिंबावती मंजुरी के नाम से जो पद मिलते हैं, उन्हीं से मणिपुरी कविता के विकास में स्त्रियों की भूमिका के संकेत ग्रहण किए ज

हिन्दी नाटकों के माध्यम से पाठ शिक्षण, प्रशिक्षण और समाधान

डॉ. चन्द्रकला  साहित्य की इस विविधता भरी दुनिया में जहाँ एक तरफ नित्य नए संचार माध्यमों के प्रयोग ने विषयों के तर्कयुक्त, युक्तिसंगत पठन- पाठन, व विमर्शों को तीव्र गति दी है। साएबर जगत से इस परिवर्तन ने ही आज् के विदयार्थियों को जिस तरह से जागरूक किया है। उससे यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि वर्तमान समय में कक्षा में पढाये जाने वाले पाठ से छात्र को जोडने के साथ उसके अन्दर के सृजनात्मक लोक से भी परिचय कराया जाय। तकनीकी शिक्षा व नई शिक्षा- नीति से उत्पन्न इस चुनौती का सामना वर्तमान शिक्षाविदों एंव अध्यापकों को भी करना है। उन्हें पाठ्य- पुस्तकों को रोचक ढंग से पढने और पढाने की परिपाटी पर नये सिरे से विचार करने की भी आवश्यकता है। आज यह वर्तमान समय की मांग और आवयश्कता भी है। कारण भी स्पष्ट है। -जहाँ एक तरफ स्कूली शिक्षा बहुत पहले ही इस बदलाव से अपने को जोड चुकी है। वहीं कालेजों में विशेष कर हिन्दी में यह सारा दायित्व किताबों ने ही उठा रखा हैं। -आज यदि प्रमाणिक पाठ उपलब्ध नहीं है, या पुस्तक ही प्रिंट में नही है तो उसकी सामग्री किसी साईट पर नही मिलेगी। हिन्दी में इस दिशा में कार्य ही कुछ समय प

अंतर्राष्ट्रीय संचार व्यवस्था और सूचना राजनीति

अवधेश कुमार यादव साभार http://chauthisatta.blogspot.com/2016/01/blog-post_29.html   प्रजातांत्रिक देशों में सत्ता का संचालन संवैधानिक प्रावधानों के तहत होता है। इन्हीं प्रावधानों के अनुरूप नागरिक आचरण करते हैं तथा संचार माध्यम संदेशों का सम्प्रेषण। संचार माध्यमों पर राष्ट्रों की अस्मिता भी निर्भर है, क्योंकि इनमें दो देशों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध को बनाने, बनाये रखने और बिगाड़ने की क्षमता होती है। आधुनिक संचार माध्यम तकनीक आधारित है। इस आधार पर सम्पूर्ण विश्व को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। पहला- उन्नत संचार तकनीक वाले देश, जो सूचना राजनीति के तहत साम्राज्यवाद के विस्तार में लगे हैं, और दूसरा- अल्पविकसित संचार तकनीक वाले देश, जो अपने सीमित संसाधनों के बल पर सूचना राजनीति और साम्राज्यवाद के विरोधी हैं। उपरोक्त विभाजन के आधार पर कहा जा सकता है कि विश्व वर्तमान समय में भी दो गुटों में विभाजित है। यह बात अलग है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के तत्काल बाद का विभाजन राजनीतिक था तथा वर्तमान विभाजन संचार तकनीक पर आधारित है। अंतर्राष्ट्रीय संचार : अंतर्राष्ट्रीय संचार की अवधारणा का सम्बन्ध