अर्चना राज
ढलती उम्र का प्रेम
कभी बहुत गाढ़ा कभी सेब के रस जैसा,
कभी बुरांश कभी वोगेनविलिया के फूलों जैसा,
कभी जड़-तनेतो कभी पोखर की मछलियों जैसा,
ढलती उम्र में भी होता है प्रेम !!
क़तरा-क़तरा दर्द से साभार
अर्चना राज़ तुम अर्चना ही हो न ? ये सवाल कोई मुझसे पूछ रहा था जब मै अपने ही शहर में कपडो की एक दूकान में कपडे ले रही थी , मै चौंक उठी थी ...
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