Monday, December 2, 2019

ओ देस से आने वाले बता!


अख्तर शीरानी


 


ओ देस से आने वाले बता!


क्‍या अब भी वहां के बाग़ों में मस्‍ताना हवाएँ आती हैं?


क्‍या अब भी वहां के परबत पर घनघोर घटाएँ छाती हैं?


क्‍या अब भी वहां की बरखाएँ वैसे ही दिलों को भाती हैं?


 


ओ देस से आने वाले बता!


क्‍या अब भी वतन में वैसे ही सरमस्‍त नज़ारे होते हैं?


क्‍या अब भी सुहानी रातों को वो चाँद-सितारे होते हैं?


हम खेल जो खेला करते थे अब भी वो सारे होते हैं?


ओ देस से आने वाले बता!


शादाबो-शिगुफ़्ता1 फूलों से मा' मूर2 हैं गुलज़ार3 अब कि नहीं?


बाज़ार में मालन लाती है फूलों के गुँधे हार अब कि नहीं?


और शौक से टूटे पड़ते है नौउम्र खरीदार अब कि नहीं?


 


ओ देस से आने वाले बता!


क्‍या शाम पड़े गलियों में वही दिलचस्‍प अंधेरा होता हैं?


और सड़कों की धुँधली शम्‍मओं पर सायों का बसेरा होता हैं?


बाग़ों की घनेरी शाखों पर जिस तरह सवेरा होता हैं?


 


ओ देस से आने वाले बता!


क्‍या अब भी वहां वैसी ही जवां और मदभरी रातें होती हैं?


क्‍या रात भर अब भी गीतों की और प्‍यार की बाते होती हैं?


वो हुस्‍न के जादू चलते हैं वो इश्‍क़ की घातें होती हैं?


1 प्रफुल्‍ल स्‍फुटित 2 परिपूर्ण 3 बाग


 


ओ देस से आने वाले बता!


क्‍या अब भी महकते मन्दिर से नाक़ूस की1 आवाज़ आती है?


क्‍या अब भी मुक़द्दस2 मस्जिद पर मस्‍ताना अज़ां3 थर्राती है?


और शाम के रंगी सायों पर अ़ज़्मत की4 झलक छा जाती है?


ओ देस से आने वाले बता!


क्‍या अब भी वहाँ के पनघट पर पनहारियाँ पानी भरती हैं?


अँगड़ाई का नक़्शा बन-बन कर सब माथे पे गागर धरती हैं?


और अपने घरों को जाते हुए हँसती हुई चुहलें करती है?


ओ देस से आने वाले बता!


क्‍या अब भी वहां मेलों में वही बरसात का जोबन होता है?


फैले हुए बड़ की शाखों में झूलों का निशेमन होता है?


उमड़े हुए बादल होते हैं छाया हुआ सावन होता है?


 


ओ देस से आने वाले बता!


क्‍या शहर के गिर्द अब भी है रवाँ5 दरिया-ए-हसीं6 लहराए हुए?


ज्यूं गोद में अपने मन7 को लिए नागन हो कोई थर्राये हुए?


या नूर की8 हँसली हूर की गर्दन में हो अ़याँ9 बल खाये हुए?


 


ओ देस से आने वाले बता!


क्‍या अब भी किसी के सीने में बाक़ी है हमारी चाह? बता


क्‍या याद हमें भी करता है अब यारों में कोई? आह बता


ओ देश से आने वाले बता लिल्‍लाह10 बता, लिल्‍लाह बता


[1] शंख की [2] पवित्र [3] अज़ान [4] महानता की [5] बहती है [6] सुन्‍दर नदी [7] मणि [8] प्रकाश की [9] प्रकट [10] भगवान के लिए


 


ओ देस से आने वाले बता!


क्‍या गांव में अब भी वैसी ही मस्ती भरी रातें आती हैं?


देहात में कमसिन माहवशें तालाब की जानिब जाती हैं?


और चाँद की सादा रोशनी में रंगीन तराने गाती हैं?


 


ओ देस से आने वाले बता!


क्‍या अब भी गजर-दम1चरवाहे रेवड़ को चराने जाते हैं?


और शाम के धुंदले सायों में हमराह घरों को आते हैं?


और अपनी रंगीली बांसुरियों में इश्‍क़ के नग्‍मे गाते हैं?


 


ओ देस से आने वाले बता!


आखिर में ये हसरत है कि बता वो ग़ारते-ईमाँ2 कैसी है?


बचपन में जो आफ़त ढाती थी वो आफ़ते-दौरां3 कैसी है?


हम दोनों थे जिसके परवाने वो शम्‍मए-शबिस्‍तां4 कैसी हैं?


 


ओ देस से आने वाले बता!


क्‍या अब भी शहाबी आ़रिज़5 पर गेसू-ए-सियह6 बल खाते हैं?


या बहरे-शफ़क़ की7 मौजों पर8 दो नाग पड़े लहराते हैं?


और जिनकी झलक से सावन की रातों के से सपने आते हैं?


 


ओ देस से आने वाले बता!


अब नामे-खुदा, होगी वो जवाँ मैके में है या ससुराल गई?


दोशीज़ा है या आफ़त में उसे कमबख़्त जवानी डाल गई?


घर पर ही रही या घर से गई, ख़ुशहाल रही ख़ुशहाल गई?


ओ देस से आने वाले बता!



[1] सुबह-सवेरे [2] धर्म नष्‍ट करने वाली (अति सुन्‍दरी) [3] संसार के लिए आफत [4] शयनागार का दीपक [5] गुलाबी कपोल [6] काले केश[7] ऊषा के सागर की [8] लहरों पर


No comments:

Post a Comment

वैशाली

  अर्चना राज़ तुम अर्चना ही हो न ? ये सवाल कोई मुझसे पूछ रहा था जब मै अपने ही शहर में कपडो की एक दूकान में कपडे ले रही थी , मै चौंक उठी थी   ...