हम आये तुम आये चले जायेंगे इक रोज
समय के शिलापट्ट पर कालजयी कुछ होता नहीं ।
एक दो रोज पढ़े जाओगे
एक दो रोज सब गुनगुनायेंगे।
दोहरायेंगे कुछ दिन वेद ऋचा सा
फिर सब तुम्हें भूल जायेंगे।
दो चार दिन आँसू बहाते हैं सब
कोई हम पर जनम भर रोता नहीं
ये खजुराहो के मंदिर ये
अजंता एलोरा की गुफायें।
कुछ प्रतिबिंब अधूरी तपस्याओं के
कुछ में चित्रित हैं कुंठित वासनाये।
देह पर ही लिखे गए हैं नेह के इतिहास सारे
जग में मन जैसा कुछ भी होता नहीं ।
क्यूँ नाचती है मीरा दीवानी
सूफी किसके लिये गीत गाते।
प्रीत की चादर बुनते किसके लिए कबीरा
सूर किसको रहे अंत तक बुलाते।
वाचन मात्र मानस का होता यहाँ
राम चरित में कोई भी खोता नहीं ।
समय के शिलापट्ट पर कालजयी कुछ होता नहीं ।
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