गीतकार इन्द्रदेव भारती
कन्या भ्रूण की गुहार का
ये गीत 'शोधादर्श' पत्रिका
में प्रकाशित करने के लिये
संपादक श्री अमन कुमार
त्यागी का हार्दिक आभार।
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मुझको मत मरवाय री ।
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माँ ! मैं तेरी सोनचिरैया,
मुझको मत मरवाय री ।
काली गैया जान मुझे तू,
प्राण - दान दिलवाय री ।
हायरी मैया,क्या-क्या दैया
जाने मुझे दबोचे री ।
यहाँ-वहाँ से,जहाँ-तहाँ से,
काटे है री,.....नोचे री ।
सहा न जावे,और तड़पावे
चीख़ निकलती जाय री ।
मुझको.................री ।।
यह कटी री, उँगली मेरी,
कटा अँगूठा जड़ से री ।
पंजा काटा, घुटना काटा,
टाँग कटी झट धड़ से री ।
माँ लंगड़ी ही,जी लूँगी री,
अब तो दे रुकवाय री ।
मुझको.................री ।।
पेट भी काटा, गुर्दा काटा,
आँत औ दिल झटके में री ।
कटी सुराही, सी गर्दन भी,
पड़े फेफड़े फट के री ।
नोने - नोने हाथ सलोने,
कटे पड़े छितराय री ।
मुझको..................री ।।
आँख निकाली कमलकली सी
गुल - गुलाब से होंठ कटे ।
नाक कटी री, तोते - जैसी,
एक-एक करके कान कटे ।
जीभ कटी वो,माँ कहती जो,
कंठ रहा......गुंगयाय री ।
मुझको...................री ।।
पसली तोड़ी, हसली तोड़ी,
तोड़ी रीढ़ की हड्डी री ।
कान्धे तोड़े, कूल्हे तोड़े,
उड़ी खुपड़िया धज्जी री ।
फूट रहे रे, ख़ून के धारे,
अंग - अंग से हाय री ।
मुझको...................री ।।
पप्पी लेती, नहीं अघाती,
जिसके मखना गालों की ।
आज उसीकी खाल खींचली,
रेशमिया से बालों की ।
उधड़े - उधड़े, माँस लोथड़े,
पड़े - पड़े डकराय री ।
मुझको....................री ।।
गीतकार इंद्रदेव भारती
"भरतीयम"
ए-3, आदर्श नगर,
नजीबाबाद - 246763
( बिजनौर ) उ.प्र.
मो. 99 27 40 11 11
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