अभी तक किसी भी पुरस्कार से वंचित कवियों या शायरों को निराश होने की ज़रूरत नहीं है।उन्हें इस बात की चिन्ता करने की भी ज़रूरत नहीं है कि उनकी रचनाएं पुरस्कार योग्य नहीं है, उन्हें इसकी भी फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है कि लोग उन्हें पकाऊ कहते हैं उनकी रचनाओं को बकवास कहते हैं,सभी पुरस्कार प्यासों में एक ही गुण होना आवश्यक है वह यह कि उसकी जेब भारी हो भले ही दिमाग़ ख़ाली हो। शहर के शायर,कवि,पत्रकार और पता नहीं क्या-क्या सुनील 'उत्सव' को जब किसी मूर्खों की संस्था से लेकर काग़ज़ी संस्था तक ने कोई एज़ाज़, पुरस्कार, सम्मान नहीं दिया तो उसने अपने नाम ही की एकेडमी गढ़ ली "सुनील 'उत्सव' एकेडमी" और उसके द्वारा पुरस्कार बांटने शुरू कर दिए।देखते ही देखते उसका यह गोरखधंधा चल निकला।सबसे बड़ी आसानी यह कि न जीएसटी का झंझट न इन्कम टैक्स का।"पानपीठ" पुरस्कार से लेकर "अझेल" पुरस्कारों की कई तरह की वैराइटी है।जिन सरकारी अफ़सरों ने अपनी ऊपरी कमाई से अपने मन की बातें किताब की शक्ल में छपवा रक्खी हैं उन्हें वह 10 परसेंट की छूट भी देता है।रही पात्रों,अपात्रों,कुपात्रों में से पुरस्कार के योग्य लोगों के चयन की बात तो "सुनील 'उत्सव' एकेडमी" में सब कुछ पारदर्शी है।रचना बुरी हो,ख़राब हो,चाहे पकाऊ हो सभी को पुरस्कार मिलने के चांस पक्के हैं।रचना से कोई मतलब नहीं है।सभी पुरस्कारों के नाम के आगे न्यूनतम बोली की राशि लिखी हुई है जिसकी जेब में जितने पैसे हैं वो उस हिसाब से बोली लगाकर पुरस्कार ले सकता है।जिसकी ज़्यादा बोली होगी,पुरस्कार उसी का होगा।पकाऊ साहित्यकारों के हाथ से पुरस्कार लेने पर कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं है मगर अपनी पसन्द के किसी नेता या उसके चमचे के हाथ से पुरस्कार लेने का शुल्क अलग से देना पड़ता है। "सुनील 'उत्सव' एकेडमी" से बहुत से लोग पुरस्कार ले चुके हैं।आए दिन पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन होता ही रहता है।एकेडमी पुस्तक प्रकाशित करने का धंधा भी करती है।अगर किसी के पास अपनी एक दो रचनाएं भी हैं वह भी पुस्तक का लेखक बन सकता है, रचनाएं बिक्री के लिए भी उपलब्ध हैं।एक पन्ने के पांच सौ रुपये के हिसाब से रचनाएं उपलब्ध हैं जैसे ही कोई पेमेन्ट जमा कराएगा रचनाओं का स्वामी हो जाएगा,अगर कोई एकेडमी ही से रचना ख़रीद कर एकेडमी ही से पुस्तक छपवाता है तो उसे दस प्रतिशत की छूट भी दी जाती है।एकेडमी अभी तक कई पुस्तकों का "सामग्री सहित" प्रकाशन कर चुकी है, उनका विमोचन समारोह भी आयोजित कर चुकी है।समारोह में आवश्यक सामग्री जैसे बैज, दीपक अथवा शमा,मंच सज्जा,प्रतीक चिह्न,शाल,बुके,नाश्ता, भोजन,श्रोताओं तक की व्यवस्था है सब का मीनू उपलब्ध है,बाज़ार से कम ही ख़र्च आता है।पुरस्कारों के लिए बोली बन्द हॉल में लगाई जाती है, हॉल में एकेडमी के सदस्य और पुरस्कारों के लिए बोली लगाने वालों के अलावा कोई नहीं होता।एक बार पुरस्कार की राशि जमा होने के बाद वापस नहीं होती केवल और राशि देकर सम्मानित होने से पहले तक पुरस्कार में बदलाव किया जा सकता है अगर किसी ने तीसरे पुरस्कार के लिए राशि दी है तो वह अन्तिम समय तक दूसरे या पहले पुरस्कार को भी पा सकता है उसे केवल इतना करना होगा कि उन पुरस्कारों की लगी बोली की दोगुनी राशि जमा करानी होगी।एक असाहित्यकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि असाहित्यकारों को एकेडमी तक लाने वाले लोगों को एकेडमी कमीशन भी देती है।जो पुरस्कार प्राप्त कर लेता है वह अपना नुकसान पूरा करने के लिए किसी अन्य पुरस्कार प्यासे को पटा कर "सुनील 'उत्सव' एकेडमी" तक ले आता है और कमीशन ले जाता है,यही कारण है एकेडमी काफ़ी फल फूल रही है।उत्तर प्रदेश के ज़िलों के तो लोग पुरस्कार ख़रीद ही रहे हैं,उत्तराखंड, हरियाणा, मध्यप्रदेश, दिल्ली,बिहार तक के पुरस्कार के प्यासे एकेडमी से जुड़ रहे हैं।
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