एक ज़माना था के चमचों की हनक भी ख़ूब थी,
आजकल नेताओं तक की भी पुलिस सुनती नहीं।
एक ज़माने में गलीयों की राजनीति करने वाले चमचे भी थानों में जाकर अपने कुर्ते के कलफ़ से ज़्यादा अकड़ दिखा दिया करते थे, वे सीधे मुख्यमंत्री का आदमी होने का दावा करते थे मगर अब सारा माहौल ही बदल गया कुर्ते का कलफ़ ढीला पड़ गया चमचे कमा कर खा रहे हैं कोई बैटरी वाली रिक्शा चला रहा है कोई केले, चाउमीन,या सेव बेच रहा है।जिस पुलिस को वें हड़का दिया करते थे वही पुलिस अब उन्हें हड़का रही है लठिया रही है।अगर कोई पुराना चमचा,किसी ऐसे पुलिस वाले के हत्ते चढ़ जाता है जिसे उसने हड़काया हो तो वह पुलिस वाला उससे सारा पुराना हिसाब चुकता करता है।इस समय पुराने नेताओं की बहुत दुर्गति हुई पड़ी है।बिना पद के किसी नेता का बहुत ही बुरा हाल है वह तो थाने में जाने ही के नाम से इधर-उधर की बातें करने लगता है।पद वाला नेता भी थानों में जाना नहीं चाहता क्योंकि क्या पता कौन सा अफ़सर कैसा हो ज़रा सी देर में बेइज़्ज़ती हो जाए क्या फ़ायदा।उस ज़माने में जेबकतरों को, उठाईगिरों को,लड़कियों को छेड़ने वालों को नेता तो क्या उसका चमचा तक छुड़ा लिया करता था मगर अब चमचा तो क्या नेता तक नहीं छुड़ा सकता।वो चमचे जो बुलेट पर या बड़ी गाड़ी में बैठ कर दनदनाते फिरते थे, आजकल बुझे-बुझे से फिरते हैं।अभी एक नेता के सपरिवार जेल जाने से तो उसके जैसी सोच के सारे नेताओं को सांप सूंघ गया है।जब से उस नेता ने कहा है कि हमें जेल में पीटा जा रहा है वो भी किसी जेबकतरे की तरह नहीं एक आतंकवादी की तरह तब से तो दिखावे की सियासत करने वाले अपनी गली में पुलिस की जीप की आवाज़ सुन कर ही डरने लगे हैं।जिस नेता के फ़ोन पर ही बड़े-बड़े अफसरों का रातों रात तबादला हो जाता था वह आज आनन्द बक्षी का लिखा यह गाना गा रहा है-
ऐ खुदा, हर फ़ैसला तेरा मुझे मंजूर है,
सामने तेरे तेरा बंदा बहुत मजबूर है....
निपटी हुई पार्टियों के नेताओं की ऐसी दुर्गति पर उनके चमचे कभी-कभी घड़ियाली आंसू भी बहा दिया करते हैं।अब तो ज़्यादातर निपटी हुई पार्टियों के नेताओं ने अपने-अपने फ़ोन में अजीब से गीतों की कॉलर टोन लगवा रक्खी है, जैसे "दुखी मन मेरे मान मेरा कहना..जहाँ नहीं चैना वहां नहीं रहना"...,"जब दिल ही टूट गया हम जी के क्या करेंगे...।कई तो दल भी बदल चुके हैं उनमें कुछ तो मज़े ले रहे हैं और कुछ अभी भी इज़्ज़त के लिए तरस रहे हैं।एक मुंडन समारोह में निपटी हुई पार्टियों के निपटे हुए नेताओं का मिलन हुआ,वहाँ मदिरा सेवन करते हुए सब अपने-अपने दुखड़े एक दूसरे को सुना रहे थे, जाम के साथ-साथ सभी का दर्द भी छलक रहा था।एक ने कहा यार तुम तो इस बात पर रो रहे हो कि तुम्हें अफ़सर ने नमस्ते नहीं की अबे मुझे देखो जो अफ़सर मेरे आगे पीछे घूमता था उसी ने मुझे बैठने तक को नहीं कहा कसम से बड़ी तौहीन महसूस हुई,जब तक हमारी पार्टी की सरकार नहीं आती सोचता हूँ किसी लोकल मन्त्री का चमचा ही बन जाऊं।एक नेता ने दूसरे के कान में कहा कि सुना है तुम्हारे दोस्त नेता को पुलिस ने थप्पड़ मारा जब वो बिजलीचोरों की हिमायत कर रहा था, इस पर उस नेता ने कहा कि झूठ है ये बात दूसरी पार्टी वाले अफ़वाह फैला रहे हैं,हड़काने और धमकाने की बात तो ठीक है मगर थप्पड़ की बात अफ़वाह है।एक नेता ने कहा यार कब तक हम यह व्यवहार सहन करेंगे,परसों बड़े वाले नेता से छोटे नेता जेल में मिलने गए,जब वें अन्दर गए तब तो तलाशी ली ही गयी मगर जब वे मिलकर बाहर आये तब भी उनकी तलाशी हुई,भला जेल से वें क्या उखाड़ कर ला सकते थे,ऊपर से अन्य कैदियों ने उनसे पानी की ख़राब टोंटियों की शिकायत भी की।एक नेता ने कहा कि अब यह सब सहन नहीं होता सोचता हूँ गांव लौट जाऊं और अपना वही झाड़ फूंक का धन्धा कर लूं,इस पर दूसरे ने कहा कि मुझे भी सिखा देना मैं भी अपने गांव में जाकर यही कर लूंगा, तो नेता ने कहा कि इसमें सीखने जैसा कुछ नहीं है बस किसी भी फ़िल्म को देखकर ड्रेस और मेकअप किये रखना और बाहर बोर्ड पर लिखवा देना "हमारे यहाँ हारे हुए निराशा में डूबे हुए नेताओं की विशेष झाड़-फूंक की जाती है"।
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