इन्द्रदेव भारती
प्रिये ! तुम्हारे,
और.....हमारे,
परिणय की इस वर्षगांठ पर,
आज कहो तो,
क्या दूँ तुमको,
जो कुछ भी है,प्रिये ! तुम्हारा,
मेरा क्या है ।।
नयन....तुम्हारे,
स्वप्न.....तुम्हारे,
मधु-रजनी नवरंग तुम्हारे।
सुबह- शाम के,
आठों याम के,
जन्म-मरण के रंग तुम्हारे।
कल-आज-कल,
सुख का हर पल,
सब पर लिक्खा नाम तुम्हारा,
मेरा क्या है ।।
स्वांस तुम्हारे,
प्राण तुम्हारे,
तन-मन के सब चाव तुम्हारे।
पृष्ठ....तुम्हारे,
कलम तुम्हारे,
गीत-ग़ज़ल के भाव तुम्हारे।
तुमको अर्पण,
और समर्पण,
मेरा यह सर्वस्व तुम्हारा,
मेरा क्या है ।।
48 वे "परिणय दिवस" पर उर के उद्गार
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