Thursday, June 4, 2020

खुशियाँ  दे  तो   पूरी दे


इन्द्रदेव भारती



खुशियाँ  दे  तो   पूरी दे ।
बिल्कुल  नहीं अधूरी दे ।


कुनबा  पाल सकूँ  दाता,
बस  इतनी  मजदूरी  दे ।


बेशक आधी  प्यास बुझे,
लेकिन   रोटी   पूरी   दे ।


बिटिया  बढ़ती  जावे  है,
इसको  मांग  सिंदूरी  दे ।


पैर  दिये   हैं  जब   लंबे,
तो  चादर  भी   पूरी  दे ।


आँगन   में   दीवार  उठे,
ऐसी   मत  मजबूरी  दे ।


'देव'  कपूतों  से  अच्छा,
हमको  पेड़  खजूरी  दे । 



नजीबाबाद(बिजनौर)उ.प्र


No comments:

Post a Comment

वैशाली

  अर्चना राज़ तुम अर्चना ही हो न ? ये सवाल कोई मुझसे पूछ रहा था जब मै अपने ही शहर में कपडो की एक दूकान में कपडे ले रही थी , मै चौंक उठी थी   ...