इन्द्रदेव भारती
खुशियाँ दे तो पूरी दे ।
बिल्कुल नहीं अधूरी दे ।
कुनबा पाल सकूँ दाता,
बस इतनी मजदूरी दे ।
बेशक आधी प्यास बुझे,
लेकिन रोटी पूरी दे ।
बिटिया बढ़ती जावे है,
इसको मांग सिंदूरी दे ।
पैर दिये हैं जब लंबे,
तो चादर भी पूरी दे ।
आँगन में दीवार उठे,
ऐसी मत मजबूरी दे ।
'देव' कपूतों से अच्छा,
हमको पेड़ खजूरी दे ।
नजीबाबाद(बिजनौर)उ.प्र
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