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लौकी की बेल


इन्द्रदेव भारती




रामा !  बेल  चढ़ी  लौकी की,
लो  अपने  भी  द्वार  चढ़ी ।।


भोर  भये   में   कलियां   फूटैं,
सूरज    चढ़ते    चटकै     हैं ।
भरी   दुपहरी   फूलन    फूलैं,
देख  सभी   जन   मटकै   हैं ।


चोबाइन    के    चौबारे   पै,
त्यागन   की   दीवार  चढ़ी ।।


छुटकी-छुटकी कोमल जइयाँ,
बड़की - बड़की जब  होंगी ।
जब होंगी जी,  तब  होंगी वो,
और  ग़ज़ब  की   सब  होंगी ।


धोबनिया  के  घाट  पै  फैली,
नाइन    के   ओसार   चढ़ी ।।


घोसनिया   के   घेर  चढ़ी जी,
बामनिया    के     बंगले   पै ।
चौहनिया  के  चौक  चढ़ी  तो,
जाटनिया    के    जंगले   पै ।


गुरुद्वारे   के   गुम्बद  ऊपर,
मंदिर  जी   के   द्वार  चढ़ी ।।


मनिहारन  की   चढ़ी  मुंडेरी,
चढ़ी  जुलाहन   के   घर  पै ।
चढ़ी   लुहारन  के   हाते   में,
छिप्पीयन   के    छप्पर   पै ।


गिरजाघर  के  गेट  चढ़ी  तो,
मस्ज़िद  की   मीनार  चढ़ी ।।


चढ़ी  अमीरन  के  आंगन  में,
नीम   चढ़ी    निर्धनिया  के ।
चढ़ी  खटीकन की   खोली पै,
बिना   भेद    तेलनिया   कै ।


हिंदू, मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई
वार के  सब पे  प्यार चढ़ी ।


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