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 श्याम रंग वाला कागा


इन्द्रदेव भारती




(1)
भोर   भये    वो,
आता   है    जो,
काँव-काँव  करता कागा ।
नंद   के    नंदन,
के   शुभ  दर्शन,
करता है  वो  बिन नागा ।
(2)
हाथ में....पौंची,
गल.....वैजन्ती,
कान में कुंडल मधुर बजे ।
कटि करधनिया,
पग....पैंजनिया,
पंख  मोर का शीश सजे ।
(3)
जसुमति  मैया,
कृष्ण  कन्हैया,
को माखन - रोटी देके ।
चुपके -चुपके,
ओट में छुपके,
रूप  देखती  कान्हा के ।
(4)
ठुमक-ठुमक के,
आये जो चलके,
आँगन बीच कन्हाई ज्यों ।
ताक   में   बैठे,
काग   ने   देखे,
दृष्टि  उधर   गड़ाई   त्यों ।
(5)
माखन    रोटी,
हरि  हाथ  की,
चोंच दबा कर के भागा ।
जगत अभागा,
मगर   सुभगा,
श्याम रंग  वाला  कागा ।


गीतकार - इन्द्रदेव भारती


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