काज़ी नज़रुल इस्लाम अनुवाद - सुलोचना बिलाल ! बिलाल ! हिलाल निकला है पश्चिम के आसमान में, छुपे हुए हो लज्जा से किस मरुस्थल के कब्रिस्तान में। देखो ईदगाह जा रहे हैं किसान, जैसे हों प्रेत-कंकाल कसाईखाने जाते देखा है दुर्बल गायों का दल ? रोजा इफ्तार किया है किसानों ने आँसुओं के शर्बत से, हाय, बिलाल ! तुम्हारे कंठ में शायद अटक जा रही है अजान। थाली, लोटा, कटोरी रखकर बंधक देखो जा रहे हैं ईदगाह में, सीने में चुभा तीर, ऋण से बँधा सिर, लुटाने को खुदा की राह में। जीवन में जिन्हें हर रोज रोजा भूख से नहीं आती है नींद मुर्मुष उन किसानों के घर आज आई है क्या ईद ? मर गया जिसका बच्चा नहीं पाकर दूध का महज एक बूँद भी क्या निकली है बन ईद का चाँद उस बच्चे के पसली की हड्डी ? काश आसमान में छाए काले कफन का आवरण टूट जाए एक टुकड़ा चाँद खिला हुआ है, मृत शिशु के अधर-पुट में। किसानों की ईद ! जाते हैं वह ईदगाह पढ़ने बच्चे का नमाज-ए-जनाजा, सुनते हैं जितनी तकबीर, सीने में उनके उतना ही मचता है हाहाकार। मर गया बेटा, मर गई बेटी, आती है मौत की बाढ़ यजीद की सेना कर रही है गश्त मक्का मस्जिद के आसपास। कहाँ हैं इमाम? कौन स...