असरारुल हक़ मजाज़ बोल ! अरी, ओ धरती बोल ! राज सिंहासन डाँवाडोल! बादल, बिजली, रैन अंधियारी, दुख की मारी परजा सारी बूढ़े, बच्चे सब दुखिया हैं, दुखिया नर हैं, दुखिया नारी बस्ती-बस्ती लूट मची है, सब बनिये हैं सब व्यापारी बोल ! अरी, ओ धरती बोल ! ! राज सिंहासन डाँवाडोल! कलजुग में जग के रखवाले चांदी वाले सोने वाले देसी हों या परदेसी हों, नीले पीले गोरे काले मक्खी भुनगे भिन-भिन करते ढूंढे हैं मकड़ी के जाले बोल ! अरी, ओ धरती बोल ! राज सिंहासन डाँवाडोल! क्या अफरंगी, क्या तातारी, आँख बची और बरछी मारी कब तक जनता की बेचैनी, कब तक जनता की बेज़ारी कब तक सरमाए के धंधे, कब तक यह सरमायादारी बोल ! अरी, ओ धरती बोल ! राज सिंहासन डाँवाडोल! नामी और मशहूर नहीं हम, लेकिन क्या मज़दूर नहीं हम धोखा और मज़दूरों को दें, ऐसे तो मजबूर नहीं हम मंज़िल अपने पाँव के नीचे, मंज़िल से अब दूर नहीं हम बोल ! अरी, ओ धरती बोल ! राज सिंहासन डाँवाडोल! बोल कि तेरी खिदमत की है, बोल कि तेरा काम किया है बोल कि तेरे फल खाये हैं, बोल कि तेरा दूध पिया है बोल कि हमने हश्र उठाया, बोल कि हमसे हश्र उठा है बोल कि हमसे जागी दुनिया बोल कि...