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मन समर्पित, तन समर्पित

रामावतार त्यागी   मन समर्पित, तन समर्पित, और यह जीवन समर्पित। चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ। माँ तुम्‍हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन, किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन- थाल में लाऊँ सजाकर भाल मैं जब भी, कर दया स्‍वीकार लेना यह समर्पण। गान अर्पित, प्राण अर्पित, रक्‍त का कण-कण समर्पित। चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ। माँज दो तलवार को, लाओ न देरी, बाँध दो कसकर, कमर पर ढाल मेरी, भाल पर मल दो, चरण की धूल थोड़ी, शीश पर आशीष की छाया धनेरी। स्‍वप्‍न अर्पित, प्रश्‍न अर्पित, आयु का क्षण-क्षण समर्पित। चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ। तोड़ता हूँ मोह का बंधन, क्षमा दो, गाँव मेरी, द्वार-घर मेरी, ऑंगन, क्षमा दो, आज सीधे हाथ में तलवार दे-दो, और बाऍं हाथ में ध्‍वज को थमा दो। सुमन अर्पित, चमन अर्पित, नीड़ का तृण-तृण समर्पित। चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।

पर्यावरण अपना

 ज्योत्सना भारती   यह.... धरती ! रहे....सजती ! सजे पर्यावरण अपना । यही   विनती ! कलम करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।।             ( 1 ) ये  जीवनदायनी  वायु, ये जीवनदायी पानी है । ये माटी  उर्वरा  माँ  है, ये ऊर्जा भी बचानी है । वो वापिस लो ! गया   है   जो ! हरा पर्यावरण अपना ।। यही   विनती ! कलम करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।।              ( 2 ) कहीं पे  रात हैं  दहकी, कहीं पे दिन हैं बर्फानी । कहीं भूकंप,कहीं सूखे, कहीं वर्षा की मनमानी । न कर दूषित ! करो  पोषित ! बचा पर्यावरण अपना ।। यही   विनती ! कलम करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।।               ( 3 ) है कटना वृक्ष जरूर एक, तो पौधें दस वहाँ  लगनी । नहीं कंक्रीट  की  फसलें, किसी भी खेतअब उगनी । न  शोषित   हो ! औ शोभित हो ! सदा  पर्यावरण अपना ।। यही    विनती ! कलम  करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।।               ( 4 ) न भाषण हों,न वादे हों, न  बातें हों,  कहानी हों । यही शुभ कर्म,मानें धर्म, यदि  स्वांसें  बचानी  हों । ये  घोषित हो ! प्रदूषित    हो ! नहीं  पर्यावरण अपना ।। यही   विनती ! कलम करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।। ए/3-आदर्शनगर नजीबाबाद-246763 (ब

ऐ ज़िंदगी!

निधी   ऐ ज़िंदगी! ज़रा ठहर वक्त लिख रहा है सदियों की दास्तां। बन न जाए ये हकीक़त  कहीं किस्से कहानी दुनिया के लिए तूने तो दिखाया आईना  हम ही नादान बने गर तो तेरी क्या खता ए ज़िन्दगी  क्या अहम, क्या घमण्ड क्या मैं, क्या तू सब हैं एक दायरे में अब समझ जाएं तो बात बने।।।

खुशियाँ  दे  तो   पूरी दे

इन्द्रदेव भारती खुशियाँ  दे  तो   पूरी दे । बिल्कुल  नहीं अधूरी दे । कुनबा  पाल सकूँ  दाता, बस  इतनी  मजदूरी  दे । बेशक आधी  प्यास बुझे, लेकिन   रोटी   पूरी   दे । बिटिया  बढ़ती  जावे  है, इसको  मांग  सिंदूरी  दे । पैर  दिये   हैं  जब   लंबे, तो  चादर  भी   पूरी  दे । आँगन   में   दीवार  उठे, ऐसी   मत  मजबूरी  दे । 'देव'  कपूतों  से  अच्छा, हमको  पेड़  खजूरी  दे ।  नजीबाबाद(बिजनौर)उ.प्र

हारे थके मुसाफिर

रामावतार त्यागी   हारे थके मुसाफिर के चरणों को धोकर पी लेने से मैंने अक्सर यह देखा है मेरी थकन उतर जाती है । कोई ठोकर लगी अचानक जब-जब चला सावधानी से पर बेहोशी में मंजिल तक जा पहुँचा हूँ आसानी से रोने वाले के अधरों पर अपनी मुरली धर देने से मैंने अक्सर यह देखा है, मेरी तृष्णा मर जाती है ॥ प्यासे अधरों के बिन परसे, पुण्य नहीं मिलता पानी को याचक का आशीष लिये बिन स्वर्ग नहीं मिलता दानी को खाली पात्र किसी का अपनी प्यास बुझा कर भर देने से मैंने अक्सर यह देखा है मेरी गागर भर जाती है ॥ लालच दिया मुक्ति का जिसने वह ईश्वर पूजना नहीं है बन कर वेदमंत्र-सा मुझको मंदिर में गूँजना नहीं है संकटग्रस्त किसी नाविक को निज पतवार थमा देने से मैंने अक्सर यह देखा है मेरी नौका तर जाती है ॥

ज़िंदगी एक रस किस क़दर हो गई

रामावतार त्यागी ज़िंदगी एक रस किस क़दर हो गई एक बस्ती थी वो भी शहर हो गई घर की दीवार पोती गई इस तरह लोग समझें कि लो अब सहर हो गई हाय इतने अभी बच गए आदमी गिनते-गिनते जिन्हें दोपहर हो गई कोई खुद्दार दीपक जले किसलिए जब सियासत अंधेरों का घर हो गई कल के आज के मुझ में यह फ़र्क है जो नदी थी कभी वो लहर हो गई एक ग़म था जो अब देवता बन गया एक ख़ुशी है कि वह जानवर हो गई जब मशालें लगातार बढ़ती गईं रौशनी हारकर मुख्तसर हो गई

आधी रख,या सारी रख

इन्द्रदेव भारती   आधी रख,या सारी रख । लेकिन  रिश्तेदारी  रख ।। छोड़ के  तोड़  नहीं प्यारे, मोड़ के अपनी यारी रख । शब्दों  में  हो  शहद  घुला, नहीं  ज़बाँ पर आरी रख । भले  तेरी   दस्तार   गयी, तू  सबकी  सरदारी  रख । "देव''  नहीं   दुनिया  तेरी,   पर  तू   दुनियादारी  रख । नजीबाबाद(बिजनौर)उ.प्र