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इन्द्रदेव भारती के गीतों में लोक भावना

  गीतकार इन्द्रदेव भारती ने, उत्तर प्रदेश के जनपद बिजनौर की तहसील नजीबाबाद के ग्राम लालपुर के संभ्रांत किसान पंडित अनूपदत्त शर्मा के ज्येष्ठ पुत्र मास्टर चिरंजीलाल शर्मा के कनिष्ठ पुत्र रत्न के रूप में 4 नवंबर 1945 को जन्म लिया। आपकी मातु श्री श्रीमती रक्षा देवी जी सीधी-सादी धर्म परायण महिला थीं। तख़्ती, बुतका, कलम और हिंदंी का ‘‘क़ायदा’’ पढ़ते हुए आपने एमए ;हिंदीद्ध, साहित्य रत्न ;हिंदीद्ध, बीएड, आईजीडी बंबई की कला परीक्षा जैसी शैक्षिक योग्यताएं प्राप्त कीं। 1961 में हाईस्कूल में पढ़ते-पढ़ते तुकबंदियों में बात कहने की आपकी अभिरुचि, आपको पैरोडी लिखने तक ले गई। आपके पिताश्री के प्राथमिक शिष्य रहे जिन्हें हिंदी ग़ज़ल सम्राट ‘‘दुष्यंत कुमार’’ के नाम से दुनिया जानती है, एक दिन अपने प्राथमिक गुरु जी से मिलने जब नजीबाबाद आए तो उन्होंने पैरोडी लिख रहे इन्द्रदेव शर्मा के अंदर पनप रहे ‘‘कवि’’ को पहचान इन्हें पैरोडी लिखना छोड़, कविता लिखने के लिए प्रेरित किया और समय-समय पर आते-जाते इनका समुचित मार्गदर्शन किया। 1965 में लायन्स क्लब नजीबाबाद के मंच पर आपने जनपदीय कवियों, हुक्का बिजनौरी, मुच्छड़ बिजनौरी, दी

विवेकी राय की कहानी ‘बाढ़ की यमदाढ़ में’ पत्रकारीय तत्व

  कोमल सिंह शोधार्थी (हिंदी) शोध केन्द्र राजकीय पी0जी0 काॅलेज, कोटद्वार, पौड़ी गढ़वाल श्रीनगर गढ़वाल विश्वविद्यालय पत्रकारिता का मूल तत्व है सूचना एकत्र कर उसका प्रसार करना ताकि दूसरे लोगों को सही जानकारी मिल सके। इसी तत्व के साथ पत्रकार की नैतिकता और समाचार की सत्यता व रोचकता समाचार संकलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चूंकि कहानीकार विवेकी राय एक पत्रकार भी थे इसलिए उनके कहानी साहित्य में पत्रकारिता की झलक स्पष्ट दिखाई दे जाती है। आलोचना के लिए उनकी कहानी ‘बाढ़ की यम दाढ़’ में कहानी को चुना गया है जो कहानीकार की पुस्तक ‘गूंगा जहाज’ में संकलित है। आलोच्य कहानी का आमुख किसी समाचार की भाँति ही अनोखा प्रतीत हो रहा है- ‘यदि यह कोई कहता कि बाढ़ का तमाम पानी जमकर ठोस चमचमाता हुआ पत्थर हो गया तो उतना आश्चर्य नहीं होता जितना यह सुन कर हुआ कि दूखनराम कोहार की सात सेर दूध देने वाली भैंस रात में किसी ने चुरा ली।’ उपरोक्त पंक्तियों में समाचार सी रोचकता बन गई है। कोई भी पाठक भैंस कहाँ गई? यह जानने के लिए समाचार की भाँति संपूर्ण कहानी पढ़ जाना पसंद करेगा। समाचार को विस्तार देने जैसा ही कहानीकार ने कहानी

उच्च शिक्षा और भारतीय भाषाएँ' पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार संपन्न

  हैदराबाद (प्रेस विज्ञप्ति)।    भारत सरकार ने उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय के स्तर की पाठ्य सामग्री को आठवीं अनुसूची में उल्लिखित 22 भाषाओं में अनुवाद करने तथा प्रकाशित करने की योजना बनाई है। प्रकाशन के लिए अनुदान भी प्रदान किया जा रहा है। भारत के पास सुनिश्चित भाषा नीति नहीं है। इसीलिए भाषा नीति तैयार करने और उसे क्रियान्वित करने के लिए मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान की स्थापना की गई थी। अब अनेक विश्वविद्यालयों में लुप्तप्राय भाषाओं के लिए अलग केंद्र भी खोले जा रहे हैं। साथ ही संस्कृत भाषा के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। आज हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में बुनियादी और उच्च शिक्षा से संबंधित मौलिक  सामग्री उपलब्ध कराने के लिए अनेक कदम उठाए जा रहे हैं।    इन सब विषयों पर विमर्श हेतु गठित "वैश्विक हिंदी परिवार" के तत्वावधान में 'उच्च शिक्षा और भारतीय भाषाएँ' विषय पर 21 जून, 2020 को ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी/ वेबिनार संपन्न हुई। बतौर मुख्य वक्ता रबींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे ने अपने

लौकी की बेल

इन्द्रदेव भारती रामा !  बेल  चढ़ी  लौकी की, लो  अपने  भी  द्वार  चढ़ी ।। भोर  भये   में   कलियां   फूटैं, सूरज    चढ़ते    चटकै     हैं । भरी   दुपहरी   फूलन    फूलैं, देख  सभी   जन   मटकै   हैं । चोबाइन    के    चौबारे   पै, त्यागन   की   दीवार  चढ़ी ।। छुटकी-छुटकी कोमल जइयाँ, बड़की - बड़की जब  होंगी । जब होंगी जी,  तब  होंगी वो, और  ग़ज़ब  की   सब  होंगी । धोबनिया  के  घाट  पै  फैली, नाइन    के   ओसार   चढ़ी ।। घोसनिया   के   घेर  चढ़ी जी, बामनिया    के     बंगले   पै । चौहनिया  के  चौक  चढ़ी  तो, जाटनिया    के    जंगले   पै । गुरुद्वारे   के   गुम्बद  ऊपर, मंदिर  जी   के   द्वार  चढ़ी ।। मनिहारन  की   चढ़ी  मुंडेरी, चढ़ी  जुलाहन   के   घर  पै । चढ़ी   लुहारन  के   हाते   में, छिप्पीयन   के    छप्पर   पै । गिरजाघर  के  गेट  चढ़ी  तो, मस्ज़िद  की   मीनार  चढ़ी ।। चढ़ी  अमीरन  के  आंगन  में, नीम   चढ़ी    निर्धनिया  के । चढ़ी  खटीकन की   खोली पै, बिना   भेद    तेलनिया   कै । हिंदू, मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई वार के  सब पे  प्यार चढ़ी ।

ग़ज़लिया

इन्द्रदेव भारती आधी रख,या सारी रख । लेकिन  रिश्तेदारी  रख ।। छोड़ के  तोड़  नहीं प्यारे, मोड़ के अपनी यारी रख । शब्दों  में  हो  शहद  घुला, नहीं  ज़बाँ पर आरी रख । भले  तेरी   दस्तार   गयी, तू  सबकी  सरदारी  रख । "देव''  नहीं   दुनिया  तेरी,   पर  तू   दुनियादारी  रख ।  

एक ग़ज़लिया

इन्द्रदेव भारती खुशियाँ  दे  तो   पूरी दे । बिल्कुल  नहीं अधूरी दे । कुनबा  पाल सकूँ  दाता, बस  इतनी  मजदूरी  दे । बेशक आधी  प्यास बुझे, लेकिन   रोटी   पूरी   दे । बिटिया  बढ़ती  जावे  है, इसको  मांग  सिंदूरी  दे । पैर  दिये   हैं  जब   लंबे, तो  चादर  भी   पूरी  दे । आँगन   में   दीवार  उठे, ऐसी   मत  मजबूरी  दे । 'देव'  कपूतों  से  अच्छा, हमको  पेड़  खजूरी  दे । 

पर्यावरण अपना

ज्योत्सना भारती यह.... धरती ! रहे....सजती ! सजे पर्यावरण अपना । यही   विनती ! कलम करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।।             ( 1 ) ये  जीवनदायनी  वायु, ये जीवनदायी पानी है । ये माटी  उर्वरा  माँ  है, ये ऊर्जा भी बचानी है । वो वापिस लो ! गया   है   जो ! हरा पर्यावरण अपना ।। यही   विनती ! कलम करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।।              ( 2 ) कहीं पे  रात हैं  दहकी, कहीं पे दिन हैं बर्फानी । कहीं भूकंप,कहीं सूखे, कहीं वर्षा की मनमानी । न कर दूषित ! करो  पोषित ! बचा पर्यावरण अपना ।। यही   विनती ! कलम करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।।               ( 3 ) है कटना वृक्ष जरूर एक, तो पौधें दस वहाँ  लगनी । नहीं कंक्रीट  की  फसलें, किसी भी खेतअब उगनी । न  शोषित   हो ! औ शोभित हो ! सदा  पर्यावरण अपना ।। यही    विनती ! कलम  करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।।               ( 4 ) न भाषण हों,न वादे हों, न  बातें हों,  कहानी हों । यही शुभ कर्म,मानें धर्म, यदि  स्वांसें  बचानी  हों । ये  घोषित हो ! प्रदूषित    हो ! नहीं  पर्यावरण अपना ।। यही   विनती ! कलम करती ! बचे  पर्यावरण अपना ।।