शमशेर बहादुर सिंह सच्चाइयाँ जो गंगा के गोमुख से मोती की तरह बिखरती रहती हैं हिमालय की बफीर्ली चोटी पर चाँदी के उन्मुक्त नाचते परों में झिलमिलाती रहती हैं जो एक हजार रंगों के मोतियों का खिलखिलाता समंदर है उमंगों से भरी फूलों की जवान कश्तियाँ कि बसंत के नये प्रभात सागर में छोड़ दी गयी हैं। ये पूरब-पश्चिम मेरी आत्मा के ताने-बाने हैं मैंने एशिया की सतरंगी किरनों को अपनी दिशाओं के गिर्द लपेट लिया और मैं योरप और अमरीका की नर्म आँच की धूप-छाँव पर बहुत हौले-हौले नाच रहा हूँ सब संस्कृतियाँ मेरे सरगम में विभोर हैं क्योंकि मैं हृदय की सच्ची सुख-शांति का राग हूँ बहुत आदिम, बहुत अभिनव। हम एक साथ उषा के मधुर अधर बन उठे सुलग उठे हैं सब एक साथ ढाई अरब धड़कनों में बज उठे हैं सिम्फोनिक आनंद की तरह यह हमारी गाती हुई एकता संसार के पंचपरमेश्वर का मुकुट पहन अमरता के सिंहासन पर आज हमारा अखिल लोक-प्रेसिडेंट बन उठी है। देखो न हकीकत हमारे समय की कि जिसमें होमर एक हिंदी कवि सरदार जाफरी को इशारे से अपने करीब बुला रहा है कि जिसमें फैयाज खाँ बिटाफ़ेन के कान में कुछ कह रहा है म