सुचिता शिव कुमार पांडे भारतीय समाज में स्त्री की स्थिति बहुत ही दयनीय है। आम स्त्री को समाज में कोई स्थान नहीं हैं तो दलित स्त्रियों की दशा का अंदाजा लगाया जा सकता है। सुशीला टाकभौरे अपने एक वैचारिक निबंध में लिखती हैं 'स्त्री सर्वप्रथम स्त्री होने के कारण शोषित होती है। इसके साथ दलित स्त्री होने के कारण दोहरे रूप में शोषण-पीड़ा का संताप भोगती है ।'1 दलित स्त्रियों को अपना जीवन व्यतीत करने के लिए बहुत सारी कठिनाईयों का समाना करना पड़ता है। वह खेतों में काम करती है, उच्च जाति के घरों में काम करती है, मजदूरी करती है। दलित स्त्री अपनी मजबूरी के कारण सारे काम करती है। लेकिन पुरुष समाज उनकी मजबूरी का फायदा उठाते है उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार करते है, काम के बहाने शोषण करते है । दलित स्त्रियों की स्थिती बहुत ही दयनीय है। आर्थिक या सामाजिक दृष्टि से दलित स्त्रियों का संघर्ष कई गुना अधिक है। वे हमेशा कठिन परिश्रम करती आयी है। लेकिन उनके मेहनत का उन्हें कभी सही मूल्य नहीं मिला है। डॉ.काली चरण 'स्नेही' जी ने अपनी कविता 'दोनों के हाथ झाडू है' में लिखते है- 'पुरुष ने अप