प्रो. ऋषभदेव शर्मा 'जनपद' शब्द को जहाँ प्राचीन भारत में राज्य व्यवस्था की एक इकाई के अर्थ में प्रयुक्त किया जाता था और आजकल उत्तर प्रदेश में 'जिले' के अर्थ में व्यवहृत किया जाता है, वहीं आंध्र प्रदेश में इसका 'लोक' के व्यापक अर्थ में इस्तेमाल होता है। हिंदी कविता में 'जनपद' की चर्चा इन संदर्भों के अलावा कभी किसी क्षेत्र विशेष और कभी किसी अंचल विशेष के रूप में भी पाई जाती है। कुछ पत्रिकाओं ने ऐसे कविता विशेषांक भी प्रकाशित किए हैं जो क्षेत्र विशेष, अंचल विशेष, जिला विशेष या प्रांत विशेष की रचनाधर्मिता को एकांततः समर्पित हैं। 'जनपद' से आगे बढ़कर जब 'जनपदीय चेतना' की चर्चा की जाए तो यह सोचना पड़ेगा कि क्या उसे जनपद की भौगोलिक सीमा तक संकीर्ण बनाया जाना चाहिए, अथवा इस शब्दयुग्म को किसी विशिष्ट पारिभाषिक अर्थ से मंडित करना होगा? यदि जनपदीय चेतना को किसी भौगोलिक सीमा से आवृत्त किया जाएगा तो निश्चय ही एक भारतीय चेतना के भीतर पचीसों क्षेत्रीय चेतनाएँ या सैंकड़ों आंचलिक चेतनाएँ जनपदीय चेतना के नाम पर सिर उठाती दिखाई देंगी। विखंडनवादी उत्तरआधुनिकता