प्रो. ऋषभदेव शर्मा ग्रामवासिनी भारतमाता के चित्र हिंदी कहानी ने आरंभ से रुचिपूर्ण उकेरे हैं। कहानीकारों ने यह भी लक्षित किया है कि हमारी ग्राम संस्कृति में परिवर्तन तो युगानुरूप हुआ ही है, प्रदूषण भी प्रविष्ट हो गया है। उन्होंने परंपरा और आधुनिकता के द्वंद्व के साथ ही हाशियाकृत समुदायों के उठ खड़े होने को भी अपनी कहानियों में समुचित अभिव्यक्ति प्रदान की है और उनके संघर्ष को धार भी दी है। इसमें संदेह नहीं कि विभिन्न कहानीकारों ने ग्रामीण जन-जीवन के स्वाभाविक दृश्यों को अपनी-अपनी भाषा-शैली के माध्यम से प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है तथा ग्रामीणों पर होने वाले अत्याचार व अन्याय तथा उसके विरुद्ध प्रतिक्रिया, संघर्ष और प्रतिरोध को स्वर दिया है। प्रेमचंद ने ग्राम्य जन-जीवन संबंधी अनेक कहानियाँ लिखीं, जिनमें ग्रामीण यथार्थ संबंधी विभिन्न विषयों का उल्लेख उपलब्ध है। सवा सेर गेहूँ, सती, सद्गति आदि ग्रामीण जीवन की कथाओं में उन्होंने ग्राम जीवन तथा वहाँ के रहन-सहन व शोषण आदि स्थितियों को स्पष्ट किया है। 'सवा सेर गेहूँ' कहानी में शंकर जैसा सीधा-सादा किसान विप्र के ऋण को खलिहानी के रूप मे