- डाॅ. सुरेश गौतम - डाॅ वीणा गौतम प्रयोगवादी धारा के पश्चात् हिंदी गीतिधारा मे गीतकारों का जो वर्ग साहित्यिक मंच पर उभर कर सामने आया उनमें रामावतार त्यागी का स्वर अन्य कवियों से सर्वथा भिन्न सुनाई पड़ता है। गीति-क्षेत्र की जिस परंपरा से आगे बढ़ाने का संकल्प लेकर त्यागी जी चले उसमें वे निस्संदेह सफल हुए हैं। ये नई अनुभूति के समृद्ध गीत-कवि हैं। उन्होंने जीवन मे सौंदर्य और विकृति दोनों को महत्त्व दिया है। उनके गीतों में चित्रात्मकता है। उन्होंने समाज की पीड़ा, तिरस्कार और घृणा को संवेदना की भूमि में अनुभूत किया है। उन्हें अपने अहं पर आस्था है। उनके कतिपय गीत गाए जाने के लिए हैं और कुछ पढ़े जाने के लिए। जीवन का भोगा हुआ संदर्भ त्यागी की रचनाओं में निर्लिप्त रूप से प्रकट है। त्यागी का व्यक्ति और त्यागी का कवि एक-दूसरे के साथ इस प्रकार घुले-मिले हैं कि उनमें किसी की भी अपेक्षा कर दूसरे को जाना ही नहीं जा सकता चूंकि त्यागी ने जो कुछ देखा, जिया, सहा, झेला और भोगा है, मान उसी को वाणी दी है। ‘न उसकी अनुभूति ‘उधार’ की है न अभिव्यक्ति, न उसने अपने आपको आधुनिक सिद्ध करने के लिए झूठी भाषा का प्रयोग क